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परमाणुओं के बन्ध होने के कारण
स्निग्धरूक्षत्वाबन्धः। (33)
पुद्गलानां स्निग्धरूक्षत्वाद् बन्धो भवति। The pudgalas unite by virtue of the posperties of Snigdha (smoothness or proitive) and Ruksa (roughness or negative) associated with them. स्निग्धत्व और रूक्षत्व से बन्ध होता हैं।
विश्व में दृश्यमान एवं पाँचों इन्द्रियों के जितने द्रव्य हैं वे सब पुद्गल : की विभिन्न स्थूल पर्यायें हैं। इन स्थूल पर्यायों का मूलभूत तत्त्व परमाणु है। परमाणु अत्यंत सूक्ष्म और इन्द्रिय के अग्राह्य है। तब प्रश्न होता है कि पुद्गल की स्थूल पर्यायें, अवस्थायें कैसे बनी है ? उत्तर है-अनंत परमाणुओं के मिलने से ये अवस्थायें बनी है। पुनः प्रश्न हुआ ये परमाणु कैसे मिलते हैं? इन प्रश्न का उत्तर इस सूत्र में दिया कि, परमाणुओं के मिलन का कारण स्निग्धत्व (स्नेहपना, चिकनाई, धन आवेश) तथा रूक्षत्व (रूखापन, ऋण आवेश) है।
बाह्य और आभ्यन्तर कारण से जो स्नेह पर्याय उत्पन्न होती है उससे पुद्गल स्निग्ध कहलाता है। इसकी व्युत्पति 'स्निह्यते स्मेति स्निग्ध' होगी। तथा रूखापन के कारण पुद्गल रूक्ष कहा जाता है। स्निग्ध पुद्गल का धर्म , स्निग्धत्व है और रूक्ष पुद्गल का धर्म रूक्षत्व है। पुद्गल की चिकने गुणरूप, जो पर्याय है वह स्निग्धत्व है और इससे विपरीत परिणमन है वह रूक्षत्व है।
स्निग्ध और रूक्ष गुणवाले दो परमाणुओं का परस्पर संश्लेषलक्षण बन्ध होने पर द्विअणुक नाम का स्कन्ध बनता है। इसी प्रकार संख्यात, असंख्या
और अनन्त प्रदेश वाले स्कन्ध उत्पन्न होते हैं। स्निग्ध गुण के एक, दो, तीन चार संख्यात, असंख्यात और अनन्त भेद हैं। और इन गुण वाले परमाणु होते हैं। जिस प्रकार जल तथा बकरी, गाय, भैंस और ऊंट के दूध और घी। उत्तरोत्तर अधिक अधिक रूप से स्नेह गुण रहता है तथा पांशु, कणिका और शर्करा आदि में उत्तरोत्तर न्यूनरूप से रूक्ष गुण रहता है उसी प्रकार परमाणुओं में भी न्यूनाधिक रूप से स्निग्ध और रूक्ष गुण का अनुमान होता है।
नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने गोम्मटसार में कहा है
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