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जिस अनेकान्तवाद के बिना लोक व्यवहार भी नहीं चलता है उस जगत् का एकमेव गुरू अनेकांतवाद को मेरा नमस्कार हो ।
जैसे रामचन्द्र एक मर्यादा पुरूषोत्तम थे । वे लव, कुश की अपेक्षा पिता, दशरथ की अपेक्षा पुत्र, लक्ष्मण की अपेक्षा बड़े भाई, सीता की अपेक्षा पति, जनक की अपेक्षा दामाद ( जमाई), सुग्रीव की अपेक्षा मित्र, रावण की अपेक्षा शत्रु, हनुमान की अपेक्षा प्रभु आदि अनेक धर्म से युक्त थे। राम एक होते हु भी दशरथ की अपेक्षा पुत्र होते हुये भी लव कुश की अपेक्षा पिता रूप विरोधी गुण से युक्त थे। तो भी अपेक्षा की दृष्टि से कोई प्रकार का विरोध नहीं है। इसी प्रकार अन्यान्य गुण अपने अपने स्थान पर अविरूद्ध एवं उपयुक्त है । - विशेष ज्ञान के लिये मेरा 'अनेकान्त दर्शन' का अध्ययन करें।
100 संख्या 10 संख्या की अपेक्षा अधिक होते हुए भी 1000 संख्या की अपेक्षा कम है। जैसे सेव फल नारियल से छोटा होते हुये भी आंवले की अपेक्षा बड़ा है। आवंला सेव फल से छोटा होने पर भी इलायची की अपेक्षा बड़ा है। घी निरोगी के लिये शक्ति दायक होते हु भी ज्वर रोगी के लिए हानिकारक है। अग्नि चिमनी में रहते हुये उपकारक है परन्तु पैट्रोल-टंकी में डालने पर अपकारक है। अग्नि एक होते हुए भी पाचकत्व, दाहकत्व, प्रकाशकत्व आदि गुणों के कारण अनेक भी हैं।
यह अनेकान्त मानसिक अहिंसा है क्योंकि इसमें एकान्तवाद, हठाग्रह, पूर्वाग्रह नहीं है । अनेकान्त सिद्धांत दूसरो के सत्यांश को भी स्वीकार करता हैं। अनेकान्त का सिद्धांत है Right is mine अर्थात् जो सत्य है वह मेरा है। उसका दावा यह नहीं की Mine is Right अर्थात् मेरा जो है वह सत्य है। अनेकांत वस्तु स्वरूप तथा भावात्मक अहिंसा है तथा स्याद्वाद कथन प्रणाली या वचनात्मक अहिंसा है। इस अनेकान्त का स्पष्टीकरण करने के लिए और कुछ सरल उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। जैसे-दो इंच लम्बी वाली रेखा, एक इंच वाली रेखा से लम्बी है तथा तीन इंच लम्बी रेखा से छोटी भी है। अनामिका अंगुली कनिष्ठा से बड़ी है परन्तु मध्यमा से छोटी भी है। इसी प्रकार दिशा आदि में भी जान लेना चाहिये जैसे एक व्यक्ति के लिए दूसरा व्यक्ति पूर्व में है तो पहला व्यक्ति उसके लिए पश्चिम में होगा ।
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