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अविभागी पुद्गल परमाणु स्कन्ध रूप में किस तरह परिणत होते हैं, इसका कारण
णिद्धत्तं लुक्खतं बंधस्य य कारणं तु एयादि।
संखेज्जासखेज्जाणंतविहाणिद्धगुणक्खगुणा ॥(609)
बन्ध का कारण स्निग्धत्व और रूक्षत्व है। इस स्निग्धत्व या रूक्षत्व गुण के एक से लेकर संख्यात, असंख्यात अनन्त भेद हैं। ___एक किसी गुणविशेष की स्निग्धत्व और रूक्षत्व ये दो पर्याय हैं। ये ही बन्ध के कारण हैं। इन पर्यायोंके अविभागप्रतिच्छेदों की (शक्ति के निरंश अंश) अपेक्षा एक से लेकर संख्यात असंख्यात अनन्त भेद हैं। जैसे स्निग्ध पर्याय के एक अंश दो अंश तीन अंश इत्यादि एक से लेकर संख्यात, असंख्यात
अनंत अंश होते हैं और इन्हीं की अपेक्षा एक से लेकर अनंत तक भेद होते हैं उस ही तरह रूक्षत्व पर्याय के एक से लेकर संख्यात, असंख्यात, अनंत अंशों की अपेक्षा एक से लेकर अनन्त तक भेद होते हैं अथवा बन्ध कम से कम दो परमाणुओं में होता है। सो ये दोनों परमाणु स्निग्ध हों अथवा रूक्ष हों या एक स्निग्ध एक रूक्ष हो परन्तु बन्ध हो सकता है। जिस तरह दो परमाणुओं में बन्ध होता है उस ही तरह संख्यात असंख्यात अनन्त परमाणुओं में भी बन्ध हो सकता है, क्योंकि बन्ध का कारण स्निग्धरूक्षत्व है।
एगगुणं तु जहण्णं णिद्धत्तं विगुणतिगुणसंखेज्जाऽ संखेज्जाणंतगुणं, होदि तहा रूक्खभावं च॥(610) स्निग्धत्व का जो एक निरंश अंश है उसको ही जघन्य कहते हैं। इसके आगे स्निग्धत्व के दो तीन आदि संख्यात, असंख्यात, अनन्त अंशरूप भेद होते हैं। इस ही तरह रूक्षत्व के भी एक अंश को जघन्य कहते हैं और इसके आगे भी, दो तीन आदि संख्यात, असंख्यात, अनन्त अंशरूप भेद होते हैं।
एवं गुणसंजुत्ता, परमाणू आदिवग्गणम्मि ठिया।
जोग्गदुगाणं बंधे, दोण्हं बंधो हवे णियमा॥(611) इस प्रकार के स्निग्ध या रूक्ष गुण से युक्त परमाणु अणुवर्गणा में ही
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