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________________ दव्वं सल्लक्खणयं उप्पादव्ययधुवत्तसंजुत्तं । - गुणपज्जयासयं वा जं तं भण्णंति सव्वण्हू ॥ ( 10 ) Whatever has substantiality, has the dialectical triad of birth, death and permanence, and is the substratum of qualities and modes, is Dravya. So say the all-knowing. जो सत् लक्षण वाला है, जो उत्पादव्यय ध्रौव्य संयुक्त है अथवा जो गुणपर्यायों को आश्रय- आधार है, उसे सर्वज्ञ भगवान द्रव्य कहते हैं । प्रवचन सार में भी कुन्दकुन्द देव ने कहा है सम्भावो हि सहावो गुणेहिं सगपज्जएहिं चित्तेहिं । सव्वकालं उप्पादव्वयधुवत्तेहिं ।। (96) दव्वस्स ( प्रवचनसार, पृ. 227 ) प्रकार के गुण तथा अनेक प्रकार की अपनी पर्यायों से और उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य से सर्वकाल में द्रव्य का जो अस्तित्व है वह वास्तव में स्वभाव है। अस्तित्व वास्तव में द्रव्य का स्वभाव है, और वह (अस्तित्व) (1) अन्य साधन से निरपेक्ष होने के कारण से (2) अनादि - अनन्त, अहेतुक, एकरूप वृत्ति से सदा ही प्रवृत्त होने के कारण से, (3) विभाव धर्म से विलक्षण होने से, (4) भाव और भाववानता के भाव से अनेकत्व होने पर भी प्रदेशभेद न होने से, द्रव्य के साथ एकत्व को धारण करता हुआ द्रव्य का स्वभाव ही क्यों न हो ? (अवश्य होवे) वह अस्तित्व, जैसे भिन्न-भिन्न द्रव्यों में प्रत्येक में समाप्त नहीं हो जाता है, उसी प्रकार द्रव्य गुण और पर्याय एक-दूसरे से परस्पर सिद्ध होते हैं, - यदि एक न हो तो दूसरे दो भी सिद्ध नहीं होते, (इसलिए) उनका अस्तित्व एक ही है। Jain Education International For Personal & Private Use Only 321 www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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