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खंधं सयलसमत्थं तस्स दु अद्धं भणंति देसो त्ति। . अद्धद्धं च पदेसो परमाणू चेव अविभागी॥(75)
अनन्तानन्त परमाणुओं से निर्मित होने पर भी जो एक हो वह स्कंध नाम की पर्याय है, उसकी आधी स्कंधदेश नामक पर्याय हैं, आधी की आधी स्कंध प्रदेश नाम की पर्याय हैं। इस प्रकार भेद के कारण द्वि अणुक स्कंध पर्यंत अनन्त स्कंधप्रदेशरूप पर्यायें होती हैं। निर्विभाग एक प्रदेशवाला, स्कंध का अन्तिम अंश वह एक परमाणु है।
पुनश्च-दो परमाणुओं के संघात से (मिलने से) एक द्वि अणुक स्कन्धरूप पर्याय होती है। इस प्रकार संघात के कारण (द्वि-अणुक-स्कन्ध की भांति त्रिअणुक-स्कंन्ध-चतुरणुक स्कन्ध इत्यादि) अनन्त-स्कन्ध-रूप पर्यायें होती हैं।
विभिन्न प्रकार के स्कन्ध
बादर सुहमगदाणं खंधाणं पुग्गलो त्ति ववहारो। ते होंति छप्पयारा तेलोक्कं जेहिं णिप्पण्णं ॥(76) पुढवी जलं च छाया-चउरिंदियविसयकम्मपाओग्गा।
कम्मातीदा येवं छन्भेया पोग्गला होंति ॥(77) बादर और सूक्ष्म रूप से परिणत स्कन्धों का “पुद्गल" ऐसा व्यवहार है। वे छह प्रकार के हैं, जिनसे तीन लोक निष्पन्न हैं। (1) जिनमें षट्स्थानपतित वृद्धिहानि होती है ऐसे स्पर्श-रस-गंध, वर्णरूप गुण विशेषों के कारण (परमाणु) पूरण-गलन-धर्म वाले होने से तथा (2) स्कन्ध व्यक्ति के (स्कन्ध पर्याय के) अविर्भाव और तिरोभाव की अपेक्षा से भी (परमाणुओं 'में) पूरण-गलन घटित होने से परमाणु पुद्गल हैं ऐसा निश्चय किया जाता है। स्कन्ध तो अनेक पुद्गलमय एक पर्यायपने के कारण पुद्गलों से अनन्य होने से पुद्गल हैं ऐसा व्यवहार किया जाता है तथा (वे) बादरत्व और सूक्ष्मत्वरूप परिणामों के भेदों द्वारा छह प्रकारों को प्राप्त करके तीन लोक रूप होकर रहे हैं। वे छह प्रकार के स्कन्ध इस प्रकार हैं- (1) बादर बादर, (2) बादर, (3) बादर सूक्ष्म (4) सूक्ष्म बादर, (5) सूक्ष्म (6) सूक्ष्म सूक्ष्म । (1) बादर बादर- काष्ठपाषाणादिक (स्कन्ध) जो कि छेदन होने पर स्वयं
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