SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रूप से जो ‘अण्यन्ते' अर्थात् कहे जाते हैं वे 'अणु' कहलाते है। यह इतना सूक्ष्म होता है जिससे वही आदि है, वही मध्य है और वही अन्त है। कहा भी है 'अत्तादि अत्तमज्झं अत्तंतं णेव इंदिये गेज्झं । जं दव्वं अविभागी तं परमाणु विआणाहि ।' जिसका आदि, मध्य और अन्त एक है, और जिसे इन्द्रियाँ ग्रहण नहीं कर सकती ऐसा जो विभाग रहित द्रव्य है उसे परमाणु समझो। जिनमें स्थूल रूप से पकड़ना, रखना आदि व्यापार का स्कन्धन अर्थात् ' संघटना होती है वे स्कन्ध कहे जाते हैं । पुद्गलों के अनन्त भेद हैं तो भी वे सब अणु जाति और स्कन्ध जाति के भेद से दो प्रकार के हैं। इस प्रकार पुद्गलों की इन दोनों जातियों के आधार भूत अनन्त भेदों के सूचन करने के लिए सूत्र में बहुवचन का निर्देश किया है । यद्यपि सूत्र में अणु और स्कन्ध इन दोनों पदों को समसित रखा जा सकता था तब भी ऐसा न करके 'अणवः स्कन्धा:' इस प्रकार भेद रूप से जो कथन किया है वह इस सूत्र से पहले कहे गये दो सूत्रों के साथ अलग-अलग सम्बन्ध बतलाने के लिए किया है जिससे यह ज्ञान हो कि अणु, स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण वाले हैं परन्तु स्कन्ध शब्द, बन्ध सौक्ष्म्य, स्थौल्य, संस्थान, भेद, छाया, आतप और उद्योत वाले हैं तथा स्पर्शादि वाले भी हैं। 66 कुन्दकुन्द देव ने पुद्गल द्रव्य के भेद प्रभेदों का सविस्तार वर्णन पंचास्तिकाय निम्न प्रकार से किया है 312 पुद्गल द्रव्य कदाचित् स्कंधपर्याय से, कदाचित् स्कंधदेशरूप पर्याय से कदाचित् स्कंधप्रदेश रूप पर्याय और कदाचित् परमाणुरूप से यहां (लोक में) होते हैं, इस प्रकार उनके चार भेद हैं। Jain Education International खंधा य खंधदेसा खंधपदेसा य होंति परमाणु । इदि ते चदुव्वियप्पा पुग्गलकाया मुणेयव्वा ।। (74) ( पंचास्तिकाय पृ.211 ) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy