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आदि के ताड़न से जो शब्द उत्पन्न होता है वह घन शब्द है। तथा बाँसुरी और शंख आदि के फूंकने से जो शब्द उत्पन्न होता है वह सौषिर शब्द है।
(2) बन्ध- बन्ध के दो भेद हैं- वैनसिक और प्रायोगिक। जिसमें पुरुष का प्रयोग अपेक्षित नहीं है वह वैससिक बन्ध है। जैसे-स्निग्ध और रूक्ष गुण के निमित्त से होने वाला बिजली, उल्का, मेघ, अग्नि और इन्द्रधनुष आदि का विषयभूत बन्ध वैनसिक बन्ध है। और जो बन्ध पुरुष के प्रयोग के निमित्त से होता है वह प्रायोगिक बन्ध है। इसके दो भेद हैं- अजीव सम्बन्धी और जीवाजीवसम्बन्धी। लाख और लकड़ी आदि का अजीव सम्बन्धी प्रायोगिक बन्ध है। तथा कर्म और नोकर्म का जो जीव से बन्ध होता है वह जीवाजीवसम्बन्धी प्रायोगिक बन्ध है।
(3) सूक्ष्मत्व- सूक्ष्मत्व के दो भेद हैं- (1) अन्त्य (2) आपेक्षिक। परमाणुओं में अन्त्य सूक्ष्मत्व है तथा बेल, आँवला और बेर आदि में आपेक्षिक सूक्ष्मत्व है।
(4) स्थूलत्व-स्थौल्य भी दो प्रकार का है- (1) अन्त्य (2) आपेक्षिक। जगव्यापी महास्कन्ध में अन्त्य स्थौल्य है तथा बेर, आँवला और बेल आदि में आपेक्षिक स्थौल्य है।
(5) संस्थान- संस्थान का अर्थ आकृति (आकार) है। इसके दो भेद हैं- (1) इत्थंलक्षण (2) अनित्थंलक्षण। जिसके विषय में यह संस्थान इस प्रकार का है यह निर्देश किया जा सके वह इत्थंलक्षण संस्थान है। वृत्त, त्रिकोण, चतुष्कोण, आयत और परिमण्डल आदि ये सब इत्थंलक्षण संस्थान हैं। तथा इसके अतिरिक्त मेघ आदि के आकार जो कि अनेक प्रकार के हैं और जिनके विषय में यह इस प्रकार का है यह नहीं कहा जा सकता वह अनित्थंलक्षण संस्थान है।
(6) भेद- भेद के छह भेद हैं- (1) उत्कर (2) चूर्ण (3) खण्ड (4) चूर्णिका (5) प्रतर (6) अणुचटन। करोंत आदि से जो लकड़ी को चीरा जाता है वह उत्कर नामका भेद है। जौ और गेहूं आदि का जो सत्तू और कनक आदि बनता है वह चूर्ण नामका भेद है। घट आदि के जो कपाल और शर्करा
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