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Manifestations of pudgala (matter) take the form of sound, union, fineness, grossness, figure, divisibility, darkness, shade or image, sunshine and moonlight. तथा वे शब्द, बन्ध, सूक्ष्मत्व, स्थूलत्व, संस्थान, भेद, अन्धकार, छाया, आतप और उद्योत वाले होते हैं। ___ इस सूत्र में आधुनिक विज्ञान की, भौतिक विज्ञान की विभिन्न शाखायें तथा रासायनिक विज्ञान की शाखाओं का वर्णन किया गया है पाँचों इन्द्रियों के विषय अर्थात् पाँचों इन्द्रियों से ग्रहण करने योग्य सम्पूर्ण पदार्थ पुद्गल की विभिन्न अवस्थाएं हैं। जैसे- कान से सुनने योग्य शब्द, आँखों से देखने योग्य वर्ण एवं संस्थान, प्रकाश-अन्धकार, छोटा-बड़ा आकार आदि। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने कहा है
सद्दो बंधो सुहुमो थूलो संठाणभेदतमछाया। उज्जोदादवसहिया पुग्गलदव्वस्स पज्जाया॥(16)
द्रव्य संग्रह शब्द, बन्ध, सूक्ष्म, स्थूल, संस्थान, भेद, तम, छाया, उद्योत और आतप इस से सहित जो हैं वे सब पुद्गल द्रव्य के पर्याय हैं।
(1) शब्द-शब्द के दो भेद हैं (1) भाषात्मक शब्द (2) अभाषारूप। • भाषात्मक शब्द दो प्रकार के हैं :- (1) साक्षर (2) अनक्षर। जिसमें शास्त्र रचे जाते हैं और जिससे आर्य और म्लेच्छों का व्यवहार चलता है ऐसे संस्कृत
शब्द और इससे विपरीत शब्द ये सब साक्षर शब्द हैं। जिससे उनके सातिशय • ज्ञान के स्वरूप का पता लगता है ऐसे दो इन्द्रिय आदि जीवों के शब्द अनक्षरात्मक शब्द हैं। ये दोनों प्रकार के शब्द प्रायोगिक हैं। अभाषात्मक शब्द दो प्रकार के हैं- (1) प्रायोगिक (2) वैनसिक। मेघ आदि के निमित्त से जो शब्द उत्पन्न होते हैं वे वैनसिक शब्द है। तथा तत, वितत, घन और सौषिर के भेद से प्रायोगिक शब्द चार प्रकार के हैं। चमड़े से मढ़े हुए पुष्कर, भेरी और दुर्दर से जो शब्द उत्पन्न होता है वह तत् शब्द है। तांत वाले वीणा और सुघोष आदि के ताडन से जो शब्द उत्पन्न होता है वह वितत्त शब्द है। ताल, घण्टा
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