________________
इन पांचों शरीर कर्म मूलत: सूक्ष्म होने से अप्रत्यक्ष हैं और जो स्थूल है वह प्रत्यक्ष है। मन अप्रत्यक्ष ही है। वचन और श्वासोच्छ्वास कुछ प्रत्यक्ष और कुछ अप्रत्यक्ष हैं-क्योंकि ये इन्द्रियों के विषय नहीं हैं अत: इन्द्रियों से अतीत हैं। अत: शरीर पुद्गल है।
2. कार्माण शरीर पौद्गलिक- यद्यपि कार्माण शरीर आकार रहित है तथापि मूर्तिमान् पुद्गलों के सम्बन्ध से अपना फल देता है, जैसे ब्रीहि (चावल) आदि धान्य, पानी, धूप आदि मूर्तिमान पुद्गलों के सम्बन्ध से पकता है। इसलिए पौद्गलिक है, उसी प्रकार कार्माण शरीर भी गुड़ कंटक आदि मूर्त्तिमान पुद्गल द्रव्यों के सम्बन्ध से पकता है, अर्थात् इष्टानिष्ट बाह्य सामग्री के निमित्त से कार्माण शरीर अपना फल देता है, अत: कार्माण शरीर पौद्गलिक है, क्योंकि कोई भी अमूर्त पदार्थ मूर्तिमान पदार्थ के सम्बन्ध से नहीं पकता तथा अमूर्त पदार्थ.मूर्तिमान पदार्थ से विपच्यमान दृष्टिगोचर नहीं होता। वचन पौद्गलिक-पुद्गल के निमित्त से होने से दोनों प्रकार के वचन पौद्गलिक हैं। वचन दो प्रकार के हैं-द्रव्यवचन और भाववचन। दोनों ही पौद्गलिक हैं क्योंकि दोनों ही पुद्गल के कार्य हैं अर्थात् पुद्गल के निमित्त से ही होते हैं। भाववचन, वीर्यान्तराय और मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण के क्षयोपशम तथा अङ्गोपाङ्ग नामकर्म के उदय के निमित्त से होते हैं। अत: भावमन पुद्गल का कार्य होने से पौद्गलिक है; यदि वीर्यान्तराय और मति-श्रुत-ज्ञानावरण रूप पौद्गलिक कर्मों का क्षयोपशम नहीं हो तो भाववचन हो ही नहीं सकता। भाववचन के सामर्थ्य वाले आत्मा के द्वारा प्रेर्यमाण पुद्गल वचनरूप से परिणत होते हैं अर्थात् आत्मा के द्वारा तालु आदि क्रिया से जो पुद्गल वर्गणाएं वचनरूप परिणत होती हैं उसे द्रव्यवचन कहते हैं। श्रोतेन्द्रिय का विषय होने से द्रव्य वचन भी पौद्गलिक हैं। प्रश्न - यदि शब्द पौद्गलिक है तो एक बार ग्रहण होने के बाद उनका ___ पुन: ग्रहण क्यों नहीं होता? अर्थात् एक बार उच्चारण करने के
बाद वही शब्द पुन: सुनाई क्यों नहीं देता ?
299
www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Personal & Private Use Only