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उत्तर
प्रश्न
उत्तर
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- बिजली के समान असंहतत्व होने पुनः गृहीत नहीं होते हैं। जिस प्रकार चक्षु इन्द्रिय के द्वारा उपलब्ध बिजली द्रव्य एक बार चमक कर फिर शीघ्र ही विशीर्ण; ( नष्ट) हो जाता है अतः पुनः आँखों से दिखाई नहीं देता हैं, उसी प्रकार श्रोतेन्द्रिय के द्वारा एक बार उपलब्ध (सुने गये) वचन सम्पूर्ण से शीघ्र ही विशीर्ण हो जाने से पुन: दुबारा नहीं सुनाई देते ।
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- यदि शब्द पौद्गलिक हैं तो चक्षु आदि के द्वारा शब्दों का ग्रहण क्यों नहीं होता ?
शब्द को अमूर्त्तिक कहना उचित नहीं है क्योंकि शब्द का मूर्त्तिमान पदार्थ के द्वारा ग्रहण, प्रेरणा और अवरोध देखा जाता है। शब्द अमूर्त्तिक है 'अमूर्त आकाश का गुण होने से' यह कथन भी ठीक नहीं है क्योंकि मूर्त्तिमान, पौद्गलिक पदार्थों के द्वारा ग्रहण होता है । कर्णेन्द्रिय का विषय होने से मूर्त्तिमान श्रोतेन्द्रिय के द्वारा उसका ग्रहण होता है जो अमूर्त होता है वह किसी मूर्त्तिमान इन्द्रिय के द्वारा ग्राह्य नहीं होता । वायु के द्वारा प्रेरित रूई की तरह एक स्थान से दूसरे स्थान को प्रेरित किया जाता है क्योंकि विरूद्ध दिशा में स्थित व्यक्ति को वह शब्द सुनाई देता है, अर्थात् जिस तरफ की वायु होती है उधर ही अधिक सुनाई देता है, वायु के प्रतिकूल होने से समीपस्थ को भी सुनाई नहीं देता है। इससे अनुमान होता है कि शब्द प्रेरित है और यंत्र के द्वारा प्रेरित कर दूसरे देशों में भिजवाया भी जाता है। अमूर्त पदार्थ मूर्तिमान पदार्थों के द्वारा प्रेरित नहीं होता । नल, बिल, रिकार्ड आदि में नदी के जल की तरह शब्द रोका भी जाता है, परन्तु अमूर्तिक पदार्थ मूर्तिमान् किसी प्रदार्थ के द्वारा
घ्राण के द्वारा ग्रहण करने योग्य होने पर गन्धद्रव्य रसादि की अनुपलब्धि के समान चक्षु आदि के द्वारा गृहीत नहीं होते हैं। जैसे घ्राणेन्द्रिय
द्वारा ग्राह्य गन्धद्रव्य के साथ अविनाभावी रूप, रस, स्पर्श आदि विद्यमान रहकर के भी सूक्ष्म होने से प्राणेन्द्रिय के द्वारा उपलब्ध नहीं होते अर्थात् घ्राणेन्द्रिय के द्वारा ग्राह्य नहीं होते हैं, उसी प्रकार श्रोतेन्द्रिय के विषयभूत शब्द सूक्ष्म होने से चक्षु आदि शेष इन्द्रियों द्वारा गृहीत नहीं होते ।
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