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________________ प्रेरक कारण हो जावें तो गति और स्थिति में परस्पर ईर्ष्या हो जावे। जिन द्रव्यों की गति हो वे सदा ही चलते रहें और जिनकी स्थिति हो वे सदा ही ठहरे रहे उनकी कभी गति न हो। ऐसा नहीं दिखलाई पड़ता है किन्तु यह देखा जाता है कि, जो गमन करते हैं वे ही ठहरते हैं या जो ठहरे हुए हैं वे ही गमन करते हैं। इसी से सिद्ध है कि ये धर्म और अधर्म मुख्य हेतु नहीं हैं। यदि ये मुख्य हेतु नहीं है तो जीव और पुद्गलों की कैसे गति और स्थिति होती है। इसलिये कहते हैं कि, वे निश्चय से अपनी ही परिणमन शक्तियों से गति या स्थिति करते हैं। धर्म, अधर्म द्रव्य मात्र उदासीन सहायक है। आकाश का उपकार या लक्षण . आकाशस्यावगाहः। (18) जीवानामजीवानाम् च आकाशस्य उपकारः अवगाहः। The function of space, i.e. Akasa is to give place to all other substances. अवकाश देना आकाश का उपकार है। ____ धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, जीव द्रव्य, पुद्गल द्रव्य एवं काल द्रव्य को अवकाश देने वाला आकाश द्रव्य है। आकाश सबसे विशालतम द्रव्य है एवं सर्वव्यापी के साथ-साथ अवगाहनत्व शक्तियुक्त होने के कारण आकाश द्रव्य अन्य द्रव्यों को अवकाश देता है। द्रव्यसंग्रह में कहा भी है___अवगासदाण जोग्गं जीवादीणं वियाण आयासं। जो जीव आदि द्रव्यों को अवकाश देने वाला है उसे आकाश द्रव्य जानना चाहिए। पंचास्तिकाय में भी कहा है सव्वेसिं जीवाणं सेसाणं तह य पुग्गलाणं च। 'जं देदि विवरमखिलं तं लोए हवदि आयासं॥(90) लोक में जीवों को और पुद्गलों को वैसे ही शेष समस्त द्रव्यों को जो सम्पूर्ण अवकाश देता है, वह आकाश है। 297 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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