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________________ भी अवस्थान समझना चाहिये। तत्त्वार्थसार में कहा भी है लोकाकाशस्य तस्यैकप्रदेशादींस्तथा पुनः। पुद्गला अवगाहन्ते इति सर्वज्ञशासनम् ॥(25) अध्याय 3 पृ.95 अवगाहनसामर्थ्यात्सूक्ष्मत्वपरिणामिनः। तिष्ठन्त्येकप्रदेशेऽपि बहवोऽपि हि पुद्गलाः ॥(26) एकापवरकेऽनेकप्रकाशस्थितिदर्शनात्। न च क्षेत्रविभागः स्यान्न चैक्यमवगाहिनाम् ॥(27) अल्पेधिकरणे द्रव्यं महीयो नावतिष्ठते। इदं न क्षमते युक्तिं दुःशिक्षितकृतं वचः॥(28) अल्पक्षेत्रे स्थितिर्दृष्टा प्रचयस्य विशेषतः। पुद्गलानां बहूनां हि करीषपटलादिषु ॥(29) पुद्गल द्रव्य लोकाकाश के एक प्रदेश से लेकर समस्त लोकाकाश में स्थित हैं ऐसा सर्वज्ञ भगवान् का कथन है। दूसरे प्रदेशों के लिये स्थान देने की सामर्थ्य होने से सूक्ष्म परिणमन करने वाले बहुत पुद्गल लोकाकाश के एक प्रदेश में रह जाते हैं। एक घर में अनेक दीपकों के प्रकाश की स्थिति देखी जाती है, इसलिये अवगाहन करने वाले द्रव्यों का क्षेत्र जुदा-जुदा नहीं होता और न उन द्रव्यों में एकरूपता आती है। "छोटे अधिकरण में बहुत बड़ा द्रव्य नहीं रह सकता" ऐसा अज्ञानी जनों का कहना युक्ति को प्राप्त नहीं है क्योंकि छोटे क्षेत्र में भी सन्निवेशकी विशेषता से बहुत से पुद्गलों की स्थिति देखी जाती है। जैसे गोबर के उपला आदि में धूम के बहुत से प्रदेशों की स्थिति देखी जाती है। असंख्येयभागादिषु जीवानाम्। (15) लोकाकाशे असंख्येयभागादिषु जीवानामवगाहो भवति। The place of souls is in one or more of (these) innumerable parts. जीवों का अवगाह लोकाकाश के अंसख्यातवें भाग आदि में है। 288 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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