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________________ स्कन्धों के प्रदेशों मे परस्पर विरोध हो भी सकता है- अर्थात् बहुत से प्रदेश वाले पदार्थ थोड़े स्थान में नहीं रह सकते; परन्तु भेद-संघात वाले पदार्थों के समान धर्मादि पदार्थों का आकाश प्रदेशों के साथ आदि सम्बन्ध नहीं है. अपितु इनका पारिणामिक सम्बन्ध है अतः इनमें परस्पर प्रदेशों का अविरोध सिद्ध है अर्थात् अमूर्त्तिक पूर्वापरभावरहित अनादिसम्बन्धी धर्मादिक का परस्परं विरोध नहीं है । एकप्रदेशादिषु भाज्य: पुद्गलानाम् । ( 14 ) लोकाकाशे एकप्रदेशादिषु भाज्य: एकप्रदेशसंख्येयासंख्येयानन्तप्रदेशानां पुद्गलानामवगाहः । In one pradesa, i.e., in one unitary cell of space only one atom of matter will find place if it is in a free state but in an aggregate form any number of atoms can occupy one or more cells of space. पुद्गलों का अवगाहन लोकाकाश के एक प्रदेश आदि में विकल्प से होता है। एक परमाणु आकाश के जितने क्षेत्र को घेरता है उसे एक प्रदेश कहते हैं अर्थात् एक आकाश प्रदेश में स्वतन्त्र रूप में एक परमाणु रहता है। दो परमाणु यदि पृथक्-पृथक् रूप में रहते हैं तो आकाश के दो प्रदेश में रहते हैं। यदि दो परमाणु आपस में बंध जाते हैं तो आकाश के एक प्रदेश में उनका अवगाह होता है। उसी प्रकार तीन परमाणु यदि स्वतंत्र - स्वतंत्र रूप में रहते हैं तो आकाश के तीन प्रदेश में रहते हैं परन्तु जब परस्पर बंध जाते हैं तो एक प्रदेश, दो प्रदेश और तीन प्रदेश में भी रह सकते हैं। इसी प्रकार बंधविशेष के कारण संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेशी पुद्गल स्कन्धों का लोकाकाश के एक, संख्यात और असंख्यात प्रदेशों में अवस्थान जानना चाहिए । एक आकाश प्रदेश में एक परमाणु से लेकर अनंतानंत परमाणु समावेश होकर रहने का कारण यह है कि, पुद्गल के प्रचय विशेष सूक्ष्म परिणमन और आकाश की अवगाहन शक्ति के कारण होता है। एक कोठे (कमरे) में अविरोध रूप से अनेक प्रकाशों का अवस्थान 286 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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