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________________ धम्माऽधम्मा कालो पुग्गल जीवा य संति जावदिये। आयासे सो लोगो तत्तो परदो अलोगुत्तो॥(20) धर्म, अधर्म, काल, पुद्गल और जीव ये पाँचों द्रव्य जितने आकाश में है वह तो लोकाकाश है। उसके आगे अलोकाकाश है। प्रश्न- असंख्यात प्रदेश वाले लोकाकाश में अनन्तानंत जीव हैं उनसे भी अनन्तगुणे पुद्गल हैं। लोकाकाश के प्रदेशों के प्रमाण भिन्न-भिन्न कालाणु हैं तथा एक धर्म और एक अधर्मद्रव्य है ये सब किस तरह इस लोकाकाश में अवकाश पा लेते हैं ? उत्तर- जैसे एक कोठरी में अनेक दीपों का प्रकाश व एक गूढ़नाग रस के गुटके से बहुत-सा सुवर्ण व एक ऊँटनी के दूध के भरे घट में मधु का भरा घट व एक तहखाने में जय-जयकार शब्द व घंटा आदि का शब्द विशेष अवगाहना गुण के कारण अवकाश पाते हैं वैसे असंख्यात प्रदेशी लोक में अनन्तानंत जीवादि भी अवकाश पा सकते हैं। ____धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, काल द्रव्य तथा जीव द्रव्य अमूर्तिक द्रव्य होने के कारण उसकी अवगाहना की कोई समस्या नहीं है। शेष रहा पुद्गल द्रव्य। पुद्गल द्रव्य में भी सूक्ष्मत्व परिणमन शक्ति होने के कारण एवं आकाश में अवगाहन शक्ति होने के कारण अनन्त पुद्गल द्रव्य, असंख्यात प्रदेश वाले लोकाकाश में समावेश होकर रह जाते हैं। जैसे एक अगरबत्ती को जलाने से उस अगरबत्ती के धुंआ से एक कमरा भर जाता है। इस धुंआ के परमाणु (स्कंध) उस छोटी सी अगरबत्ती में ही समाहित थे। अभी आधुनिक विज्ञान से सिद्ध हुआ कि कुछ नक्षत्र में ऐसी धातु है जिसका माचिस के बराबर टुकडा का वजन 60 से लेकर 250 टन तक हो सकता है। इतना अधिक वजन होने का कारण वहाँ के परमाणु का बंधन अधिक घनस्वरूप से हुआ है। वैज्ञानिकों ने यह भी सिद्ध किया की एक हाथी को पूर्ण रूप से दबा दिया जायेगा तब वह हाथी सूई के छेद से निकल जायेगा। इसका कारण यह है कि उस में मौजूद समस्त परमाणु समूह एक ही आकाश प्रदेश में अथवा एक परमाणु में (एक परमाणु के आकार) में अनंतानंत बंध विशेष से बंधकर इकट्ठे हो 282 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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