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आशङ्कया नार्थतत्त्वज्ञैर्नभोंऽशानां समन्ततः।
षट्केन युगपद्योगात्परमाणोः षडंशता॥(34) पदार्थ के स्वरूप को जानने वाले लोगों को ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये कि सब ओर से एक समय आकाश के छह अंशों के साथ सम्बन्ध होने से परमाणु में षडंशता है।
स्वल्पाकाशषडंशाश्च परमाणुश्च संहताः।
सप्तांशाः स्युः कुतस्तु स्यात्परमाणोः षडंशता॥(35) क्योंकि ऐसा मानने पर आकाश के छोटे-छोटे छह अंश और एक परमाणु सब मिलकर सप्तमांश हो जाते हैं। अब परमाणु में षडंशता कैसे हो सकती
वर्णगन्धरसस्पर्शः पूरणं गलनं च यत्।
कुर्वन्ति स्कन्धवत्तस्मात् पुद्गलाः परमाणवः॥(36)
क्योंकि परमाणु रूप, गन्ध, रस और स्पर्श के द्वारा पूरण तथा गलन करते रहते हैं इसलिए स्कन्ध के समान परमाणु पुद्गल द्रव्य है।
समस्त द्रव्यों के रहने का स्थान
लोकाकाशेऽवगाहः। (12) धर्मादीनाम् द्रव्याणाम् लोकाकाशे अवगाहः These substances Dharma, Adharma, Jiva, Ajiva, etc. exist only in Lokakasa. इन धर्मादिक द्रव्यों का अवगाह लोकाकाश में है।
आकाश एक सर्वव्यापी अखण्ड द्रव्य होते हए भी जिस आकाश प्रदेश में जीव आदि द्रव्य रहते हैं उसे लोकाकाश कहते हैं। उसको छोड़कर अन्य अवशेष आकाश को अलोकाकाश कहते हैं। द्रव्य संग्रह में कहा भी है
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