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________________ देता है और न ही सूक्ष्मदर्शी यंत्र से दिखाई देता है। परमाणु जब मंद गति में गमन करता है तब एक समय में एक प्रदेश गमन करता है और जब तीव्र गति से गमन करता है, तब एक समय में चौदह राजू गमन कर सकता है। मध्यम गति में अनेक विकल्प हैं। अणु जब गमन करता है तब उसकी गति को कोई भी वस्तु या यंत्रादि भी नहीं रोक सकता है। विज्ञान जिसको वर्तमान में अणु मानता है वह जैन सिध्दान्त की अपेक्षा स्थूल स्कंध ही है, जिसमें अनंतानंत परमाणु मिले हुए हैं। वैज्ञानिक लोग परमाणु को अविभाज्य मानते हुए भी उनके द्वारा माना हुआ परमाणु पुन: पुन: अनेक विभाग में विभाजित होता जा रहा है। पहले न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन के समूह को अणु मानते थे। परन्तु यह भी नहीं हो सकता क्योंकि स्पष्ट रूप से ये तीनों अलग-अलग है इसकी लम्बाई भी है और इसका वजन भी है। इतना ही नहीं आगे जाकर वह खण्डित भी हो गया और उस खण्डित भाग को क्वार्क कहते हैं। यह क्वार्क भी अणु नहीं है। यह क्वार्क भी अनेक परमाणु के समूह से बना स्कन्ध है। परमाणु का विशेष वर्णन प्राचीन जैनाचार्यों ने निम्न प्रकार किया है आदिमध्यान्तनिर्मुक्तं निर्विभागमतीन्द्रियम्। मूर्तमप्यप्रदेशं च परमाणुं प्रचक्षते ॥32॥ हरिवंशपुराणपर्व, 7 जो आदि, मध्य और अन्त से रहित है, निर्विभाग है, अतींद्रिय है और मूर्त होने पर भी अप्रदेश-द्वितीयादिक प्रदेशों से रहित है उसे परमाणु कहते हैं। एकदैकं रसं वर्ण गन्धं स्पर्शावबाधको। दधत् स वर्ततेऽभेद्यः शब्दहेतुरशब्दकः ॥(33) वह परमाणु एक काल में एक रस, एक वर्ण, एक गन्ध और परस्पर में बाधा नहीं करने वाले दो स्पर्शों को धारण करता है, अभेद्य है, शब्द का कारण है और स्वयं शब्द से रहित है। 280 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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