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से जीव को सृष्टि हुई है- जैसे डार्विन आदि वैज्ञानिक और चार्वाक आदि दार्शनिक। चार्वाक का मत है पृथ्वी जल, अग्नि, वायु एवं आकाश के समिश्रण से जीव की सृष्टि होती है। जैसे- चावल, गुड आदि के मिश्रण से मद्य में मादकता की सृष्टि होती है। परन्तु उपरोक्त धारणा कपोल कल्पित एवं सत्य-तथ्य से रहित है क्योंकि जीव अमूर्तिक, चेतन द्रव्य होने से मूर्तिक अचेतन द्रव्यों से उसकी उत्पत्ति नहीं हो सकती है। जीव द्रव्य का वर्णन प्रवचन सार में कुंद-कुंद देव ने निम्न प्रकार से किया है।
दव्वं जीवमजीवं जीवो पुण चेदणोवओगमओ। पोग्गलदव्वप्पमुहं अचेदणं हवदि य अजीवं॥(127)॥
द्रव्य जीव और अजीव ऐसे दो भेद रूप है और उसमें चेतन और उपयोगमयी जीव है और पुद्गल आदिक अचेतन द्रव्य अजीव हैं।
पाणेहिं चदुहिं जीवदिजीविस्सदिजोहि जीविदो पुव्वं।
सो जीवो पाणा पुण पोग्गलदव्वेहिं णिव्वत्ता॥(147)।
जो चार प्राणों से जीता है, जीवेगा, और पहले जीता था, वह जीव है और प्राण पुद्गल द्रव्यों से निष्पन्न है।
भावा जीवादीया जीवगुणा चेदणा य उवओगो। सुरणरणारयतिरिया जीवस्स य पज्जया बहुगा॥(16)
__ (पं.का) जीवादि के "भाव" है। जीव के गुण चेतना तथा उपयोग हैं और जीव की पर्यायें देव-मनुष्य-नारक-तिर्यञ्चरूप अनेक हैं। • जीवो त्ति हवदि चेदा उवओगविसेसिदो पहू कत्ता।
भोत्ता य देहमत्तो ण हि मुत्तो कम्मसंजुत्तो॥(27)॥
आत्मा जीव है, चेतयिता है, उपयोगलक्षित है, प्रभु है, कर्ता है, भोक्ता है, देह प्रमाण है, अमूर्त है और कर्मसंयुक्त है।
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