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________________ काल और भाव रूप बाह्य कारण 'पर प्रत्यय' कहलाते हैं तथा अपनी स्वाभाविक शक्ति स्व प्रत्यय है। बाह्य कारणों के रहने पर भी यदि द्रव्य में स्वयं उस पर्याय की योग्यता न हो तो वह पर्यायान्तर को प्राप्त नहीं हो सकता । अतः स्व प्रत्यय ही समर्थ (मुख्य) कारण है। स्व और पर दोनों कारण मिलकर ही पदार्थों के उत्पाद और व्यय में कारण होते हैं। एक के भी ( निमित्त या उपादान) अभाव में उत्पाद व्यय नहीं हो सकते। जैसे-पकने योग्य उड़द यदि बोरे में पड़ा हुआ है तो भी पाक नहीं हो सकता और यदि घोटक (नहीं पकने योग्य) उड़द बटलोई में उबलते हुए पानी में भी डाला जाए तो भी वह नहीं पक सकता। अतः उभय (निमित्त उपादान) हेतुकं उत्पाद व्यय हैं; उन उत्पाद व्यय रूप स्वकीय पर्यायों के द्वारा जो प्राप्त किया जाता है वा स्वयं पर्यायों को जो प्राप्त होता है उसको द्रव्य कहते हैं। यद्यपि उत्पाद-व्यय रूप पर्यायें द्रव्य से अभिन्न हैं, तथापि भेदनय के वश से कर्तृ और कर्म में भेदविवक्षा करके 'द्रवति गच्छति' यह निर्देश किया जाता है क्योंकि स्वजाति का त्याग न करके अवस्थित तथा अन्वय रूप से स्वरूप वाले पदार्थों का बार-बार उत्पाद और विगम (व्यय) होने के कारण भेद उत्पन्न होता है। जीवाश्च । ( 3 ) Souls are also included in the category of substances. जीव भी द्रव्य है । इस अध्याय के प्रथम सूत्र में चार अजीव अस्तिकाय का वर्णन किया गया है। दूसरे सूत्र में बताया कि, ये चारों द्रव्य हैं। पुन: इस सूत्र में बताया गया कि जीव भी द्रव्य है तथा द्रव्य के साथ अस्तिकाय द्रव्य भी है। सूत्र में जो बहुवचन ( जीवा :) दिया गया है। वह जीव के भेद-प्रभेदों का सूचक स्वरूप है । 'च' शब्द द्रव्य संज्ञा के खींचने के लिये दिया गया है। जिससे 'जीव भी द्रव्य है' यह अर्थ फलित हो जाता है। इस प्रकार ये पाँच आगे कहे जाने वाले काल के साथ छह द्रव्य होते हैं। कोई-कोई दार्शनिक एवम् वैज्ञानिक यह मानते हैं कि यह जीव एवं पृथक् द्रव्य नहीं है। कुछ मानते हैं कि रसायनिक मिश्रण रसायनिक परिवर्त 268 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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