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________________ बहुप्रदेशों को धारण करते हैं इसलिये इनको 'काय' कहते हैं। अस्ति तथा काय दोनों को मिलाने से ये पाँचों 'अस्तिकाय' होते हैं। -होंति असंखा जीवे धम्माधम्मे अनंत आयासे । मुत्ते तिविह पदेसा कालस्सेगो ण तेण सो काओ ।। (25) जीव, धर्म तथा अधर्म द्रव्य में असंख्यात प्रदेश हैं और आकाश में अनन्त प्रदेश हैं। मूर्त्त (पुद्गल) में संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त प्रदेश हैं और काल के एक ही प्रदेश है इसलिये काल काय नहीं है। उपरोक्त वर्णन से सिद्ध होता है कि विश्व में, जीव तत्त्व या केवल अजीव तत्त्व ही नहीं है, परन्तु जीव तत्त्व के साथ-साथ अजीव तत्त्वभी है। इसलिये विश्व को केवल शून्य स्वरूप या केवल ब्रह्मस्वरूप, केवल भौतिकस्वरूप मानना सत्य तथ्य से रहित है। द्रव्यों की गणना द्रव्याणि । (2) Dharma Adharma, Akasa, and pudgala are the Dravyas. वे धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल द्रव्य हैं। इस सूत्र में बताया गया है कि प्रथम सूत्र में जो धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल का वर्णन किया है वे केवल गुण अथवा केवल पर्याय ही नहीं बल्कि गुण, पर्यायों का समूह स्वरूप है। 'द्रव्य' शब्द में 'दु' धातु है। जिसका अर्थ प्राप्त करना होता है। इससे द्रव्य शब्द का व्युत्पत्तिरूप अर्थ इस प्रकार हुआ है कि जो यथायोग्य अपनी-अपनी पर्यायों के द्वारा प्राप्त होते हैं या पर्यायों को प्राप्त होते हैं वे द्रव्य कहलाते है। Jain Education International स्व (उपादान) और पर (निमित्त ) प्रत्ययों ( कारणों) से होने वाले उत्पाद और व्यय रूप पर्यायों को जो प्राप्त होते हैं वा पर्यायों के द्वारा जो प्राप्त किये जाते हैं वे द्रव्य कहलाते हैं। स्व और पर कारणों से उत्पाद और व्यय जिनमें होता है वें पर्याय कहलाते हैं और जिसमें ये होती हैं, वे द्रव्य हैं। द्रव्य, क्षेत्र, For Personal & Private Use Only 267 www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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