________________
जैसे वैज्ञानिक प्रयोगशाला में अनेक तत्त्व से मिले हुए मिश्रण को वैज्ञानिक प्रणाली से पृथक् करते हैं वैसे आध्यात्मिक प्रयोगशाला में जीव एवम् अजीव रूप मिश्रण से स्व द्रव्य को अलग करना है। जैसे भौतिक मिश्रण को अलग करने के लिए उस मौलिक भौतिक तत्त्व का ज्ञान करना आवश्यक है जिससे हम पृथक् कर सकते हैं वैसे ही वीतराग रूपी प्रयोगशाला में जीव के साथ अजीव द्रव्य का ज्ञान करना आवश्यक है। यही जैनागम का सारभूत एवं सत्य-तथ्य है। पूज्यपाद स्वामी ने इष्टोपदेश में कहा भी है :
जीवोऽन्यः पुदगलश्चान्य इत्यसौ तत्त्वसंग्रहः। यदन्यदुच्यते किंचित्, सोऽस्तु तस्यैव विस्तरः॥(50)
'जीव जुदा है, पुद्गल जुदा है' बस इतना ही तत्त्व के कथन का सार है, इसीमें सब कुछ आ गया है। इसके सिवाय जो कुछ भी कहा जाता है, वह सब इसी का विस्तार है।
इस सूत्र में अजीव द्रव्यों का वर्णन होते हुए भी काल द्रव्य का वर्णन नहीं किया गया हैं क्योंकि यहाँ बहुप्रदेशी (कायवान) द्रव्यों का वर्णन होने के कारण काल को ग्रहण नहीं किया गया है क्योंकि काल द्रव्य एक प्रदेशी होने के कारण अनस्तिकाय है।
द्रव्यसंग्रह में कहा भी है :
एवं छन्भेयमिदं जीवाजीवप्पभेददो दव्वं ।
उत्तं कालविजुत्तं णायव्वा पंच अत्थिकाया दु॥(23) इस प्रकार एक जीव द्रव्य और पाँच अजीव द्रव्य ऐसे छः प्रकार के द्रव्य का निरूपण किया। इन छहों द्रव्यों में से एक काल के बिना शेष पाँच अस्तिकाय जानने चाहिये।
संति जदो तेणेदे अत्थीत्ति भणंति जिणवरा जम्हा।
काया इव बहुदेसा तम्हा काया य अस्थिकाया य॥(24)
पूर्वोक्त जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म तथा आकाश ये पाँचों द्रव्य विद्यमान हैं इसलिये जिनेश्वर इनको ‘अस्ति' (है) ऐसा कहते हैं और ये कायके समान
266
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org