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एवं सम्यग्ज्ञान का वर्णन किया है तथा सम्यग्ज्ञान के कारणभूत सम्यक् नय का भी वर्णन किया है। सम्यक् चारित्र व वर्णन सप्तम अध्याय से लेकर आगे 9वें अध्याय तक किया गया है। प्रक गन्तर से पहले अध्याय में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान का वर्णन किया गया हैं एवं द्वितीय अध्याय में सम्यग्दर्शन के कारण-भूत जीवादि सप्त तत्त्वों में से जीव तत्त्व उसके विभिन्न भाग व भेद-प्रभेदों का वर्णन किया गया है। तृतीय अध्याय में जीव के उत्तर भेद स्वरूप नारकी, मनुष्य एवं तिर्यंचों का वर्णन है। चतुर्थ अध्याय में जीव के उत्तर भेद स्वरूप चारों प्रकार के देवों का वर्णन है। पंचम अध्याय बहुत ही महत्त्व पूर्ण, दार्शनिक एवं वैज्ञानिक अध्याय है। इसमें धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य, काल द्रव्य के साथ-साथ जीव द्रव्य का भी वैज्ञानिक एवं दार्शनिक प्रणाली से सूत्र-बद्ध वर्णन है। आधुनिक विज्ञान की भौतिक विज्ञान, रसायनिक विज्ञान, जीव विज्ञान की शाखाओं के साथ-साथ अणुविज्ञान, प्रकाश सिद्धान्त, शब्द सिद्धान्त, रसायनिक बन्ध प्रक्रिया, धर्म द्रव्य (गति माध्यम Media of Motion) अधर्म द्रव्य (स्थिति माध्यम Media of rest) सापेक्ष सिद्धान्त (theory of Relativity) आदि का वर्णन है। प्रकारान्तर से तीसरे अध्याय में अधोलोक एवं मध्यलोक का वर्णन है एवं चतुर्थ अध्याय में उर्ध्वलोक (स्वर्ग) का वर्णन है। ___6 वें अध्याय में तीसरे आत्रव तत्त्व का वर्णन है। आम्रव ही संसार का मूल कारण है। मुख्य रूप से आस्रव दो प्रकार के हैं- (1) पुण्यासव (2) पापासव। पापासव संसार का कारण होने से हेय है, पुण्याम्रव परम्परा से मोक्ष का कारण होने से प्राथमिक अवस्था में उपादेय है।
तीर्थंकर प्रकृति भी पुण्यासव है, जिस प्रकृति को निश्चित रूप से सम्यग्दृष्टि ही बाँधते हैं। शुभ आम्रव एवं शुभ बन्ध जीव के लिए हितकारी होने से इसका वर्णन विस्तार रूप से सप्तम अध्याय में किया गया है। शुभआम्रव के निमित्त भूत देशव्रत एवं महाव्रत है इसलिए इस अध्याय में देशव्रत, महाव्रत का वर्णन किया गया है। प्रकारान्तर से रत्नत्रय के अभेद अंगस्वरूप चारित्र का वर्णन किया गया है। अष्टम अध्याय में जीव-अजीव, आम्रव, के बाद चतुर्थ बन्ध तत्त्व का वर्णन है। आस्रव पूर्वक बन्ध होता है इसलिए आस्रव के बाद बन्ध का वर्णन इस अध्याय में किया गया है। गोम्मट सार कर्मकाण्ड
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