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________________ में जो कर्म सिद्धान्त का वर्णन किया है उसका ही संक्षिप्त एवं सारगर्भित वर्णन इस अध्याय में किया गया है। संसार के कारणभूत आस्रव एवं बन्ध तत्त्व हैं, संवर एवं निर्जरा मोक्ष . के लिए कारणभूत है इसलिए क्रम प्राप्त पाँचवें एवं छठठे तत्त्व का वर्णन इस अध्याय में किया गया है। 9 वें अध्याय में संवर एवं निर्जरा के कारणभूत मुनि चारित्र, तप, ध्यान, गुप्ति, समिति, धर्म एवं अनुप्रेक्षा का वर्णन किया गया है। दसवें अध्याय में जीव के मुख्य ध्येय स्वरूप अन्तिम सप्तम तत्त्व मोक्ष का वर्णन किया गया है। मोक्ष का अर्थ सम्पूर्ण बन्धनों से रहित होना है। सम्पूर्ण बन्धनों से रहित होने पर सम्पूर्ण वैभाविक भाव नष्ट हो जाते हैं परन्तु स्वाभाविक भाव पूर्ण रूप से शुद्ध होकर प्रगट रूप में रहते हैं। मोक्ष प्राप्त होता है मध्य लोक के अढ़ाईद्वीप में और मुक्त जीव उसी ही एक समय में सिद्ध शिला के ऊपर लोकाग्र में अनन्त काल तक के लिये स्थिर हो जाते हैं। वहाँ से पुन: संसार में वापिस नहीं आते हैं क्योंकि संसार में परिभ्रमण होने के कारण भूत कर्मों का सम्पूर्ण रूप से अभाव होता है। सिद्ध जीव कर्म के साथ-साथ शरीर, इन्द्रियाँ, मन से भी रहित होते हैं। जन्म, जरा, मरण, शरीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक दुखों से भी रहित होते हैं। भौतिक शरीर से रहित होने के कारण अशरीरी होते हुए भी ज्ञानघनस्वरूप होने से ज्ञानाकार रूप हैं। ऐसे सिद्ध जीव अनन्त काल तक अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख, अनन्त वीर्य का अनुभव करते हुए अनन्त काल तक लोकाग्र में स्थित रहते हैं। - इस प्रकार प्रथम अध्याय के प्रथम सूत्र में जिस मोक्ष मार्ग का वर्णन किया गया उसका ही सांगोपांग वर्णन सम्पूर्ण तत्त्वार्थ सूत्र में अर्थात् दसों अध्याय में किया गया। तत्त्वार्थ सूत्र ग्रंथ समुद्र के समान अथाह, आकाश के समान व्यापक, अणु के समान सूक्ष्म, शुद्ध आत्मा के समान पवित्र, आत्मज्ञान के समान गूढ़ एवं रहस्यपूर्ण होने के कारण इसके ऊपर बड़े-बड़े आचार्यों ने बड़ी-बड़ी टीकाएँ की है। इतना ही नहीं आधुनिक पण्डितों ने भी अनेक टीकाएँ की हैं। तथापि मैंने जो इस टीका की रचना की है उसका कुछ विशेष उद्देश्य 20 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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