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सूर्य का परिभ्रमण करते समय स्वयं के कक्ष में भी भ्रमण करते हैं। इनका परिभ्रमण क्षेत्र कम- अधिक होने के कारण परिभ्रमण काल भी कम अधिक होता है। ग्रहों के अक्ष भ्रमण भी पृथक्-पृथक् है। पुच्छल तारों का परिभ्रमण क्षेत्र लंबा एवं अण्डाकृति है। चन्द्रमा - चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है। चन्द्रमा अन्यप्रभ है जो कि सूर्य के द्वारा प्रकाशित होता है। सूर्य की किरण चन्द्रमा पर पड़कर जब प्रतिफलित होती है तब चन्द्रमा प्रकाशित दिखाई देता है, जिस के कारण चन्द्ररश्मि शीतल है। चन्द्रमा का व्यास पृथ्वी के व्यास के एक चतुर्थांस = 3476 कि. मी. अर्थात् 2160 मील है। जब कि पृथ्वी का 12745 कि. मी. अर्थात् 7920 मील है इसका क्षेत्रफल 3.796 x 1013m है। इसकी सान्द्रता पानी की सान्द्रता से 3.3 गुणा है। जबकि पृथ्वी की सान्द्रता 5.5 गुणा है। इसका वस्तुत्व 2.199 x 10° m' एवं वस्तु 7.3491020 Kg. अर्थात् चन्द्र एवं पृथ्वी के वस्तु की तुलना 1/81.4 है। चन्द्र का वस्तुत्व कम होने के कारण उसकी केन्द्राकर्षण शक्ति कम है। इसलिये जो वस्तु पृथ्वी पृष्ठ में जितनी भारी होती है, वही वस्तु चन्द्र में 1/6 भाग (वजन) रह जाती है अर्थात् यहाँ जिस वस्तु का वजन 60 किलो है वहाँ उसका वजन 10 किलो रह जायेगा। जिस व्यक्ति का वजन यहाँ 60 है वहाँ उसका वजन 10 किलो होने के कारण वह स्वयं को हल्का अनुभव करेगा एवं पृथ्वी पृष्ठ में जिस वस्तु को वह कठिनाई से ऊपर उठाता है उसको वह अत्यन्त सरलता से उठा सकेगा। पृथ्वी में जितना दूर मनुष्य उछल सकता है, उससे कहीं अधिक दूरी तक चन्द्रमा में उछल सकता है। पृथ्वी जिस प्रकार सूर्य को केन्द्र करके परिभ्रमण करती है, उसी प्रकार चन्द्र पृथ्वी को केन्द्र कर परिभ्रमण करता है। पृथ्वी को परिभ्रमण करने के लिये प्राय : 27.3 दिवस लगते हैं। एक पूर्णिमा से लेकर अन्य पूर्णिमा का समय प्राय : 29.5 दिवस होता है। चन्द्र को स्वयं के अक्ष में परिभ्रमण के लिए भी 27.3 दिन लगते हैं। चन्द्र के भ्रमण एवं परिभ्रमण का काल समान होने के कारण सर्वदा उसका एक पार्श्व सूर्य की तरफ रहता है जबकि अन्य एक पार्श्व सूर्य के विपरीत पार्श्व में रहता है। जो अंश सूर्य की तरफ रहता है, वह अंश सर्वदा प्रकाशित रहता है एवं उष्ण रहता है। अन्य पार्श्व अन्धकारमय
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