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________________ है, सूर्य कलंक एवं सूर्य किरणें पाई जाती हैं। चरमोस्फेयर एवं कोरना के भेद से सूर्य के दो मण्डल हैं। चरमोस्फेयर 10000 से लेकर 15000 कि. मी. मोटा है। इसके नीचे भाग की उष्णता प्राय : 6000 सेंटीग्रेड है एवं ऊपर के भाग की प्राय :100000 सेंटीग्रेड है। कोरना स्तर में संश्लेषित ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, लौह, निकल कैल्शियम आदि अंश हैं। प्रकाशित सूर्य पृष्ठ 800 से लेकर 80000 कि. मी. विस्तृत अंधकार अंश है उसको सूर्य कलंक कहते हैं। फोटोस्फेयर की उष्णता 6000 सेंटीग्रेड एवं प्रकाश की तुलना में इस अशं का प्रकाश एवं उष्णता कम अर्थात् 4500 डिग्री होने के कारण यह अंश काला दिखाई देता है, क्योंकि अधिक प्रकाश की तुलना में कम प्रकाश तिरोहित हो जाता है एवं काला दिखाई देता है। जब सूर्य से अंतर्निहित उत्तप्त पदार्थ निकलते हैं एवं विस्फोट होते हैं तब सूर्य कलंक की सृष्टि होती है। यह कलंक प्राय : 11 वर्ष में कम-अधिक होता है। इस सूर्य कलंक के कारण पृथ्वी पृष्ठ में अनेक प्राकृतिक परिवर्तन होता है। जैसे - अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सश्य वृद्धि-हानि, समुद्र के ज्वार में हानि वृद्धि आदि। सूर्य में अनेक ज्वालाएँ हैं। जब सूर्य में शक्ति का विस्फोट होता है फिर तब यह ज्वालाएँ निकलती हैं। एक-एक ज्वाला लक्षावधि मील लंबी होती है। सूर्य अनेक दिनों से प्रकाश एवं शक्ति वितरण करता है फिर भी उसकी शक्ति एवं प्रकाश की सृष्टि होती रहती है। सौर जगत् के शक्ति एवं प्रकाश का केन्द्रस्थल सूर्य है। सूर्य स्वयं की शक्ति के माध्यम से अपने अन्य ग्रहों को अर्थात् सूर्य परिवार को आकर्षित करके अपने चतुर्पार्श्व में घुमाता है। सूर्य की शक्ति ज्यादा होने से सूर्य परिवार, सूर्य की शक्ति को अतिक्रम करके घुमता हुआ बाहर पलायन नहीं करता है। सूर्य के अभाव से सूर्य परिवार अंधकाराछन्न हो जायेगा एवं ग्रहों में अत्यधिक शीत के कारण बर्फ जम जायेगी। सूर्य के अभाव से पृथ्वी में तथा अन्य ग्रहों में जीव-जगत् का अभाव हो जाएगा। भू-पृष्ठ में दिवा-रात्रि, ऋतु परिवर्तन, वृष्टि आदि सूर्य के कारण से होते हैं। सूर्य के बुध, मंगल, पृथ्वी आदि नवग्रह, कुछ पुच्छलतारा आदि हैं। यह ग्रह सूर्य को केन्द्र करके अण्डाकार-पथ में परिभ्रमण करते हैं। ग्रहादि 240 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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