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अत्थइ सणी णवसये चित्तादो तारगावि तावदिए।
जोइसपडल-बहल्लं दससहियं जोयणाण सयं ॥ (334) चित्रा पृथ्वी से शनिश्चर नौ सौ योजन ऊपर स्थित है और तारागण भी नौ सौ योजन पर्यन्त अवस्थित हैं, अत : ज्योतिषी देवों के पटलों का बाहुल्य मात्र 110 योजन ही है। चित्रा पृथ्वी से 900 योजन (3600000 मील) ऊपर जाकर शनिश्चर ग्रह स्थित है, तथा इसी पृथ्वी से 790 योजन (3160000 मील) ऊपर जाकर अर्थात् 790 योजन से 900 योजन पर्यन्त तारागणों की नगरियाँ स्थित हैं। अत: ज्योतिषी देवों का कुल क्षेत्र 110 योजन (440000 मील ) मात्र प्राप्त होता है।
(त्रिलोक सार पृ.स.280) विज्ञान की अपेक्षा इस ब्रह्माण्ड में अनेकानेक आकाश गंगा, निहारिका, नक्षत्रपुञ्ज, नक्षत्र, ग्रह, उपग्रह, पुच्छलतारा, उल्कापिण्ड आदि हैं। मुख्यत: ज्योतिर्लोक को दो भाग में विभक्त कर सकते हैं। (1) स्वयंप्रभ (2) अन्यप्रभ से प्रकाशित। ज्योतिष्क को जो स्वयंप्रभ हैं, नक्षत्र कहते हैं। जो अन्य के प्रभाव से प्रकाशित हैं, उनको ग्रह एवं उपग्रह कहते हैं। नक्षत्र से ग्रह एवं ग्रह से उपग्रह की सृष्टि होती है। सूर्य – सूर्य के समान हमारे विश्व में अन्य कोई ज्योतिष्क मूल्यवान नहीं है। सूर्य भी सामान्य नक्षत्र है। पृथ्वी के लिए सूर्य प्रकाश एवं शक्ति का आधार है। सूर्य का व्यास प्राय : 1.4 x 10° मीटर है। यह प्राय : पृथ्वी से 109 गुना बडा है। सूर्य का वस्तुत्व 2 x 1030 Kg. अथवा, प्राय : पृथ्वी से 3,33,000 गुना वस्तुत्व के समान है। सूर्य का घनत्व 1.4 g/cm' अर्थात् पृथ्वी के घनत्व का चतुर्थांश है। सूर्य हल्के द्रव्य से बना है। सूर्य के स्वयं अक्ष के परिभ्रमण का काल 27 दिन है। सूर्य का मध्य भाग हृदय है जो समस्त शक्तियों का आधार है। यहाँ पर हॉइड्रोजन के नाभिक प्राय : 14 मिलियन सेंटीग्रेड उष्णता से हीलियम नाभिक में परिवर्तित होते रहते हैं। जब यह परिवर्तन होता है, तो गामा किरणों से शक्ति उत्पन्न होती है। दूसरा स्तर, जो कि घन न्यूक्ली गैस गामा किरण से विस्फोट होता है, जिसकी मोटाई 130000 कि. मी. है। इसको फोटोस्पेयर कहते हैं। इसके बाह्य भाग में जो कि सूर्य का बाह्य स्तर
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