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एवं शीतल रहता है। जो अंश प्रकाशित रहता है, वह अंश हमको दिखाई देता है, अन्य अंश कभी दिखाई नहीं देता है। नित्य सूर्य किरण की प्राप्ति से एवं ज्वालामुखी के कारण चन्द्रपृष्ठ मरूभूमि के समान है। चन्द्रपृष्ठ में अनेक गहवर एवं छोटे-छोटे पहाड़ हैं। गह्वर के कारण चन्द्रपृष्ठ हम लोगों को कलंक से सहित दिखाई देता है। ज्वालामुखी के कारण वहाँ की मिट्टी प्राय : भस्म के समान है। वहाँ की परिस्थिति जीव सृष्टि के अनुकूल नहीं है। ऑक्सीजन का परिमाण बहुत ही कम है, जल का अभाव है, इसलिए चन्द्र पर जीव जगत् नहीं है। पहले भी वहाँ जीव जगत् नहीं था तथा आगे भी जीव जगत् की सृष्टि की संभावना नहीं है। सूर्य, चन्द्र से 400 गुना बड़ा है। किंतु हिन्दुओं के मतानुसार, सूर्य की दूरी हमसे चन्द्र की अपेक्षा 400 गुना अधिक होने से दोनों समान दिखाई देते हैं। अमावस्या में दोनों एक साथ उदय एवं अस्त होते हैं। पूर्णिमा के दिन सूर्य के अस्त होने के बाद चन्द्र उदय होता है। अन्य समय में दोनों का उदय एवं अस्त भिन्न-भिन्न समय में होता है। सूर्य एवं चन्द्र के कारण समुद्र में ज्वार-भाटा भी आती है।
चन्द्र में मध्यान्ह काल में उष्णता 125 डिग्री सेंटीग्रेड है, सन्ध्या काल में - 10 डिग्री सेंटीग्रेड है और मध्य रात्रि में -80 डिग्री सेंटीग्रेड है।
हिन्दुओं के मतानुसार, सूर्य एवं चन्द्र देव हैं। दोनों देव आकाश में स्वयं रथ के ऊपर बैठकर गमन करते हैं। पुराण के अनुसार, सूर्य, कश्यप
और अदिति का पुत्र माने जाते हैं। सूर्य अपने सात घोड़ों वाले रथ में बैठकर भ्रमण करते हैं। अरूण इस रथ के सारथी हैं। सूर्य भगवान् रथ में बैठे हुए सब लोगों को तथा उनके शुभाशुभ कर्मों को देखते हैं। संज्ञा (छाया या अश्विनी) उनकी प्रधान पत्नी का नाम है। इसके यम और यमुना पैदा हुए हैं। दो अश्विनी कुमारों तथा शनिका जन्म भी इनसे ही हुआ है। राजाओं के सूर्य वंश का प्रवर्तक तेजस्वी मनु भी सूर्य के ही पुत्र थे। वर्ष में एक बार सूर्य अपने शत्रु राहु या केतु द्वारा ग्रसित होते हैं। ग्रसने की इस घटना को सूर्यग्रहण कहते है।
चन्द्र सूर्य का एक ग्रह है। हिन्दुओं का मत है कि चन्द्र समुद्र से उत्पन्न हुआ है। अपनी माता के शाप के कारण चन्द्र का आकार एक पक्ष में बढ़ता
और दूसरे पक्ष में घटता है। आकार का घटना बढ़ना चन्द्रकला के रूप में
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