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________________ हैं ऐसे जीव मरकरके जन्मान्तर में भूत आदि बन सकते हैं। वैक्रियिक शरीरधारी होने के कारण एवं छोटे से छोटे देव में भी अल्पमात्रा में भी अणिमा, गरिमा आदि ऋद्धि होने से वे विभिन्न छोटे बड़े शरीर को धारण करके आश्चर्यकारी कार्य कर सकते हैं। छोटे-बड़े दृश्य अदृश्य शरीर धारण कर सकते हैं। जिन के ऊपर राग होता है उन्हें लाभ पहुँचा सकते हैं और जिन पर द्वेष होता है उन्हें क्षति भी पहुंचा सकते हैं। उनका शरीर वैक्रियिक होने के कारण एवं इच्छानुसार छोटा-बड़ा शरीर धारण करने की शक्ति होने के कारण वे दूसरों के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। जिसको साधारणत: भूत लग गया मानते हैं वह प्राय: गलत है। परन्तु भूत कदाचित् शरीर में प्रवेश कर सकता है लाभ-हानि पहुँचा सकता है यह भी सत्य है। परन्तु भ्रांतिवशत: अज्ञानता के कारण वायुविकार, हिस्टेरिया, कामविकार, दमित इच्छा आदि के कारण जो मन में एवं शरीर में विकार उत्पन्न होता है उसे ही भूत प्रविष्ट मान लेते हैं। ज्योतिष्क देवों के पाँच भेद ज्योतिष्का: सूर्याचन्द्रमसौ ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णकतारकाश्च । (12) The classes of settlers are: 1. Surya the sun. 2. Chandrama, the moon. 3. Graha, the planets. 4. Nakshatra, the constellations. 5. prakirnika taraka, scattered stars. ज्योतिषी देव पांच प्रकार के है- सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारें। द्योतन स्वभावत्व होने से ये ज्योतिष्क कहलाते हैं। द्योतन, प्रकाशन ये एकार्थवाची। प्रकाश करने का ही स्वभाव होने से पांचो विकल्पों वाले ज्योतिषी देवों को “ज्योतिष्का", यह सार्थक सामान्य संज्ञा है। ज्योतिष्क देवों के अवस्थान कहाँ पर हैं इस का वर्णन त्रिलोकसार में निम्न प्रकार हैं 236 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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