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है। देवगति नामकर्म के उदय से स्वधर्म विशेष के सामर्थ्य से चयन (पुद्गल प्रदेशों का चयन) होता है, संघात होता है. से निकाय कहते हैं। चार निकाय जिसके हैं उसको चतुर्णिकाय कहते हैं । भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक हैं।
भवनत्रिक देवों में लेश्या का विभाग आदितस्त्रिषु पीतान्तलेश्या: । (2)
From the first to the third (have 4) Lesyas or Paints up to yellow i.e. कृष्ण Black नील Jndigo कापोत Grey and पीत yellow.
आदि के तीन निकायों में पीत पर्यन्त चार लेश्याँए हैं। आदि के - भवनवासी, व्यन्तर, और ज्योतिषी इन तीन निकाय देवों के कृष्ण, नील, कापोत और पीत ये चार लेश्याएँ होती है।
चार निकायों के प्रभेद
दशाष्टपञ्चद्वादशविकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यन्ता: । ( 3 )
भवनवासी Residertial celestial beings are of 10 classes. व्यंतर Peripatetic celestial beings are of 8 classes. ज्योतिष्क Stellar celestial beings are of 5 classes.
. कल्पवासी Heavenly celestial beings are of 12 classes.
Total beings are of 35 classes.
, पाँच
कल्पोपपन्न देव तक के चार निकाय के देव क्रम से दस, आठ, प और बारह भेद वाले हैं।
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जिनमें इन्द्र आदि दस प्रकार कल्पे जाते हैं अर्थात् विभाग किये जाते हैं वे कल्प कहलाते हैं। इस प्रकार इन्द्रादिक की कल्पना ही कल्प संज्ञा का कारण हैं। यद्यपि इन्द्रादिक की कल्पना भवनवासियों में भी सम्भव है फिर भी रूढ़ि . से कल्प शब्द का व्यवहार वैमानिकों में ही किया जाता है। जो कल्पों में उत्पन्न होते हैं वे कल्पोपपन्न कहलाते हैं। तथा जिनके अन्त में कल्पोपपन्न देव हैं उनको कल्पोपपन्न पर्यन्त कहा है । भवनवासी दस प्रकार के हैं, व्यन्तर आठ प्रकार के हैं, ज्योतिष पांच प्रकार के हैं और वैमानिक बारह प्रकार के
हैं।.
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