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अध्याय 4 देवों का वर्णन The Celestial Beings
देवों के भेद
देवाश्चतुर्णिकायाः। (1) Celestial beingsl are of four orders, groups or classes : भवनवासी Residential. व्यंतर Peripatetic. ज्योतिष्क Stellar. वैमानिक Heavenly. देव चार निकाय वाले हैं। गोम्मट्टसार में देव की परिभाषा निम्न प्रकार दी गई है
दीव्वंति जदो णिच्चं, गुणेहिं अद्वेहि दिव्व भावहिं।
भासंतदिव्वकाया, तम्हा ते वण्णिया देवा।
'देव' शब्द दिव् धातु से बना है जिसके कि क्रीड़ा, विजिगीषा, व्यवहार, द्युति, स्तुति, मोद, मद आदि अनेक अर्थ होते हैं। अतएव निरूक्ति के अनुसार जो मनुष्यों में न पाये जा सकने वाले प्रभाव से युक्त हैं तथा कुलाचलों परवनों में या महासमुद्रों में सपरिवार विहार, क्रीड़ा किया करते हैं। बलवानोंको भी जीतने का सामर्थ्य रखते हैं। पञ्चपरमेष्ठियों तथा अकृत्रिम चैत्य, चैत्याल्योआदि की स्तुति वन्दना किया करते हैं। सदा पंचेन्द्रियों के सम्बन्धी विषयोंके भोगों से मुदित रहा करते हैं, जो विशिष्ट दीप्ति के धारण करने वाले हैं,जिनका शरीर धातु, मलदोष रहित एवं अविच्छिन्न रूप लावण्य से युक्त सदायौवन अवस्था में रहा करता है और जो अणिमा आदि आठ प्रकार की ऋद्धियों को धारण करने वाले हैं उनको देव कहते हैं। यह देव-पर्याय के स्वरूप मात्र का निदर्शन है। लक्षण के अनुसार जो अपने कारणों से संचित देवायु और देवगति नामकर्म के उदय से प्राप्त पर्याय को धारण करनेवाले संसारी जीव हैं वे सब देव हैं।
स्वधर्म विशेष अपादित सामर्थ्य से निश्चयन किया जाता है, वह निकाय
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