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आप्त, आगम और तत्त्वों के श्रद्धान से सम्यक्त्व होता है। समस्त दोषों से रहित और सकल गुणों से सहित आत्मा होता है।
जीवा पोग्गलकाया, धम्माधम्मा य काल आयासं।
तच्चत्त्था इदि भणिदा, णाणगुणपज्जएहिं संजुत्ता॥[9] जीव; पुद्गलकाय, धर्म, अधर्म, काल और आकाश से छहों ही विविध गुण पर्यायों से संयुक्त तत्त्वार्थ' इस प्रकार से कहे गये हैं।
इसी प्रकार मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रात्मक है। यह रत्नत्रय जीव का स्वभाव होने से मोक्षमार्ग भी जीव का स्वरूप है। इतना ही नहीं, रत्नत्रय की पूर्णता ही मोक्ष है और यह पूर्णता जीव में ही होती है इसलिए जीव का स्वस्वरूप ही मोक्ष है। द्रव्यसंग्रह में कहा भी है
सम्मइंसणणाणं चरणं मोक्खस्स कारणं जाणे।
ववहारा णिच्छयदो तत्तियमइयो णिओ अप्पा ॥[39] सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनों के समुदाय को व्यवहार से मोक्ष का कारण जानो। तथा निश्चय से सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान और चारित्र स्वरूप जो निज आत्मा है उसको मोक्ष का कारण जानो।
रयणत्तयं ण वट्टइ अप्पाणं मुइत्तु अण्णदवियम्हि। - तम्हा तत्तियमइओ होदि हु मोक्खस्स कारणं आदा॥[40] आत्मा को छोड़कर अन्य द्रव्य में रत्नत्रय नहीं रहता इस कारण उस रत्नत्रयमयी जो आत्मा है वही निश्चय से मोक्ष का कारण है।
मोक्ष की सिद्धि सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान एवं सम्यक् चारित्र के सम्यक् समवाय (समुदाय, संगठन, मिलन) से ही होती है। राजवार्तिक में अंकलंक देव स्वामीने कहा भी है
रसायन के समान सम्यग्दर्शनादि तीनों में अविनाभाव सम्बन्ध है, नान्तरीयक . (तीनों के साथ अविनाभाव) होने से। तीनों की समग्रता के बिना मोक्ष की . प्राप्ति नहीं हो सकती है। जैसे रसायन के ज्ञान मात्र में रसायनफल अर्थात्
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