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प्रमाण है। इन्हें कल्पकाल कहते हैं। अर्थात् बीस कोटाकोटि सागर का एक कल्पकाल है।
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(1) सुषमा सुषमा- इसका काल 4 कोड़ाकोड़ी सागर का होता है। इसके प्रारम्भ में मनुष्य देवकुरु और उत्तरकुरु के समान है अर्थात् प्रथमभोगभूमि की रचना होती है। प्रारंभ में आयु 3 पल्य और शरीर की ऊँचाई 3 कोस । (2) सुषमा- इसका काल 3 कोड़ाकोड़ी सागर का है। इसके प्रारम्भ में मनुष्यों की आयु हरिक्षेत्र के मनुष्यों के समान 2 पल्य प्रमाण और शरीर की ऊँचाई 2 कोस प्रमाण है। अर्थात् हरिक्षेत्र के समान मध्यम भोगभूमि की रचना होती है।
(3) सुषमा दुःषमा - इसका काल 2 कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है। इसके प्रारम्भ में मनुष्यों की आयु हैमवत और हैरण्यवत मनुष्यों के समान । पल्य और शरीर की ऊँचाई । कोश प्रमाण है। तथा इसमें जघन्य भोगभूमि की रचना होती है।
( 4 ) दु:षमा सुषमा- इसका काल 42 हजार वर्ष कम । कोड़ाकोड़ी सागर है। इसके प्रारम्भ में मनुष्यों की आयु । कोटि पूर्व और शरीर की ऊँचाई 500 धनुष प्रमाण है।
( 5 ) दुःषमा - इसका काल 21 हजार वर्ष प्रमाण । तथा मनुष्यों की आयु 120 वर्ष प्रमाण और शरीर की ऊँचाई 7 हाथ प्रमाण है।
( 6 ) अति दु:षमा - इसका काल 21 हजार वर्ष प्रमाण है। इस काल के प्रारम्भ में शरीर की ऊँचाई दो हाथ और आयु 16 वर्ष प्रमाण है ।
उत्सर्पिणी का प्रारंभ अवसर्पिणी से विपरीत जानना चाहिए अर्थात् उत्सर्पिणी अति दुःषमा से प्रारम्भ होती है और क्रमशः आयु आदि बढ़ते-बढ़ते सुषमा सुषमा तक जाती है।
Excepting these two (Bharata and Airavata) the other (five) Earths are constant (there is no increase or decrease in bliss, age, height etc.
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अन्य भूमियों की व्यवस्था ताभ्यामपराभूमयोऽवस्थिताः । ( 28 )
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