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________________ स्वरूप है। जम्बू-द्वीप के दक्षिण से लेकर उत्तर तक जो देश एवम् कुलाचल है उनके विस्तार का वर्णन यहाँ किया है। उनका विस्तार भरत क्षेत्र से विदेह तक द्विगुणित है। 24 वें सूत्र में जम्बूद्वीप का विस्तार 526 6/19 कहा गया. है। आगे जो द्विगुणित द्विगुणित हुआ है वह इस भरत क्षेत्र को ईकाइ लेकर हुआ है। इसलिए हिमवान् पर्वत का विस्तार भरत क्षेत्र से दुगना अर्थात् एक हजार बावन योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से बारह भाग प्रमाण है । हैमवत क्षेत्र का विस्तार दो हजार एक सौ पाँच योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से पाँच भाग प्रमाण है। महाहिमवान् कुलाचल का विस्तार चार हजार दो सौ दस योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से दस प्रमाण है। हरि क्षेत्र का विस्तार आठ हजार चार सौ इक्कीस योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से एक भाग प्रमाण है। निषध कुलाचल का विस्तार सोलह हजार आठ सौ बयालीस योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से दो भाग प्रमाण है । विदेह क्षेत्र का विस्तार तैतीस हजार छह सौ चौरासी योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से चार भाग प्रमाण है। विदेह क्षेत्र के आगे के पर्वत और क्षेत्रों का विस्तार उत्तराः दक्षिणतुल्याः । (26) To the north Videha the arrangement and extent of Ksetras, mountains, rivers, lakes, islands is exactly corresponding to those in the south of it. उत्तर के क्षेत्र और पर्वतों का विस्तार दक्षिण के क्षेत्र और पर्वतों के समान हैं। उत्तर के क्षेत्र और पर्वत अर्थात् ऐरावत से लेकर नील पर्यन्त क्षेत्र को स्वीकार किया गया है। सारांश यह है कि भरत और ऐरावत, हिमवान् और शिखरी, हैमवत् और हैरण्यवत, महाहिमवान् और रूक्मि, हरिवर्ष और रम्यक तथा निषध और नील का विस्तार, इनके हृदों और कमलों की लम्बाई चौड़ाई वगैरह तथा 212 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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