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________________ मोक्ष मार्गः" लिखकर दिवाल पर टंगा दिया था। एक दिन आहार चर्या के लिए गृद्धपिच्छाचार्य (उमास्वामी) आये उन्होंने आहार के बाद उस सूत्र को .देखकर विचार किया कि यह सूत्र गलत है तथा संशोधन के योग्य है क्योंकि केवल दर्शन, ज्ञान, चारित्र से मोक्ष नहीं होता बल्कि सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र के समूह से मोक्ष होता है। इसलिए उन्होंने इस सूत्र के पहले 'सम्यक' शब्द जोड़ दिया जिससे “सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः" सूत्र बन गया। उसके बाद आचार्य श्री अपनी वसतिका में लौट गये। जब आचार्य श्री आहार के लिए आये थे तब सिद्धय्य बाहर गया हुआ था। जब वह वापस आया तब उसने देखा कि सूत्र के पहले 'सम्यक्' शब्द लगा हुआ है। तब वह अपनी माता से मुनिराज के आने का समाचार ज्ञात करके खोजता हुआ उनके पास पहुँचा और नमन करने के बाद पूछा-गुरुदेव! आत्मा का हित क्या है ? मुनि महाराज बोले-आत्मा का हित समस्त बंधनों से रहित पूर्ण स्वातन्त्र्य या मोक्ष है। पुनः उसने प्रश्न किया - भगवन् ! मोक्ष के प्राप्त करने का उपाय क्या है? आचार्य श्री ने उत्तर दिया-'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' उसके बाद वह श्रावक विचार करता है शास्त्र का रचनाकार मैं नहीं हो सकता हूँ। गुरुदेव ही इसके लिए समर्थ है इसलिए उसने गुरुदेव से मोक्षमार्ग के प्ररुपणा के अर्थ शास्त्र रचना की प्रार्थना की। तब आचार्य उमास्वामी ने उस भव्य को सम्बोधन करने के लिए भव्यजनों को मार्ग दर्शन करने के लिए, आत्म सम्बोधन के लिए, सत्यार्थ प्रकाशन के लिए, वस्तु स्वरूप निरूपण करने के लिए, धर्म प्रभावना के लिए, परम्परा आगत जिनवाणी को जीवित रखने के लिए, एवं आगे बढ़ाने के लिए 'तत्त्वार्थ सूत्र' की रचना की। क्योंकि आचार्य देव को मालूम था वर्तमान काल में कोई तीर्थंकर, गणधर, महान पुरुष नहीं है, परन्तु उन महान पुरुष की वाणी, व जिनवाणी ही उनके उत्तरदायित्व को निभाती है। इसलिए जिनवाणी की रचना एवं प्रचार-प्रसार ही जिनवाणी की पूजा है जिनवाणी की पूजा ही भगवान् की पूजा है। पद्मनन्दी आचार्य ने कहा भी है: 13 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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