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________________ अध्याय: 3 सात पृथिवियाँ - नरक रत्नशर्कराबालुकापङ्कधूमतमोमहातमः प्रभाः भूमयो घनाम्बुवाताकाश प्रतिष्ठाः सप्ताधोऽधः ।(1) There are 7 earths, lying parallel to each other and with an intervening space separating one from the other. Beginning from the earth which we inhabit, these earths are situated, each one lower than the other. Each one is surrounded and supported, by 3 atmospheres of. रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा महातम: प्रभा ये सात भूमियाँ घनाम्बुवात और आकाश के सहारे स्थित है तथा क्रम से नीचे नीचे हैं। मोक्षमार्ग रत्नत्रयात्मक है। सम्यग्दर्शन और इसके विषय भूत, जीवादि सात तत्त्व है। इसलिए द्वितीय अध्याय से सर्वश्रेष्ठ एवं उपादेय जीव तत्त्व का वर्णन चल रहा है। द्वितीय अध्याय में जीव के कुछ असाधारण भाव का वर्णन है और इस अध्याय में भी जीवों के निवास स्थानों का वर्णन है। जीवों के निवास स्थान को मुख्यतः तीन भाग में विभक्त कर सकते है यथा- (1) अधोलोक (2) मध्यलोक (तिर्यग्लोक) (3) उर्ध्वलोक। इनमें से क्रम से प्राप्त अधोलोक और अधोलोक निवासी नारकियों का वर्णन सर्वप्रथम किया है। उन नारकी की शीत-उष्ण, शारीरिक-मानसिक आदि वेदना को सुनकर जीव संसार-शरीर भोगों से विरक्त हो सकता है इसलिए नरक का वर्णन पहले किया (1) रत्नप्रभा - जिसकी प्रभा चित्र आदि रत्नों की प्रभा के समान है वह रत्नप्रभा भूमि है। (2) शर्कराप्रभा - जिसकी प्रभा शर्करा के समान है वह शर्कराप्रभा भूमि (3) बालुकाप्रभा - जिसकी प्रभा बालुका के समान है वह बालुकाप्रभा भूमि 184 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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