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(4) पंकप्रभा - जिसकी प्रभा कीचड़ के समान है वह पंकप्रभा भूमि है। (5) धूमप्रभा - जिसकी प्रभा धुंआ के समान है वह धूम प्रभा भूमि है। (6) तमप्रभा - जिसकी प्रभा अन्धकार के समान है वह तमप्रभा है। (7) महातमप्रभा - जिसकी प्रभा गाढ अंधकार के समान है वह महातम:
प्रभा है। नरक की पृथिवीयों की मोटाई(1) पहली पृथिवी एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी है। (धम्मा) (2) दूसरी पृथिवी बत्तीस हजार योजन मोटी है। (वंशा) (3) तीसरी पृथिवी अठ्ठाईस हजार योजन मोटी है। (मेघा) (4) चौथी पृथिवी चौबीस हजार योजन मोटी है। (अंजना) (5) पाँचवी पृथिवी बीस हजार योजन मोटी है। (अरिष्ठा) (6) छट्ठी पृथिवी सोलह हजार योजन मोटी है। (मघवा) (7) सातवीं पृथिवी आठ हजार योजन मोटी है। (माघवी)
पहली रत्नप्रभा पृथिवी एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी है तथा खर भाग, पंक भाग और अब्बहुल भाग इन तीन भागों में विभक्त है। पहला खर भाग सोलह हजार योजन मोटा है, दूसरा पकंभाग चौरासी हजार योजन मोटा है और तीसरा अब्बहल भाग अस्सी हजार योजन मोटा है। पंक भाग में राक्षस तथा असुर कुमार देव रत्नमयी भवन में रहते हैं। खर भाग में नौ प्रकार के भवनवासी देव निवास करते हैं और अब्बहुल.भाग में नारकी निवास करते हैं। - वातवलय- घनोदधि, घनवात और तनुवात ये तीनों वातवलय इस लोक को सब ओर से घेरकर स्थित है। आदि का घनोदधि वातवलय गोमूत्र के वर्ण के समान है, बीच का घनवातवलय मूंग के समान वर्णवाला है और अन्त का तनुवात वलय परस्पर मिले हुए अनेक वर्णोंवाला है। ये वातवलय दण्ड के आकार लम्बे हैं, घनी भूत है, ऊपर नीचे तथा चारों ओर स्थित है: चंचलाकृति हैं, तथा लोक के अन्त तक वेष्टित हैं। अधोलोकके नीचे तीनों वातवलयों में से प्रत्येक का विस्तार बीस-बीस हजार योजन है और लोक के ऊपर तीनों वातवलय कुछ कम एक योजन विस्तार वाले हैं।
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