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गोम्मट्ठसार कर्मकाण्ड में नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने अपमृत्यु के बाह्य कारणों का वर्णन निम्न प्रकार किया है
विसवेयणरत्तक्खयभयसत्थग्गहणसंकिलेसेहिं। उस्सासाहाराणं णिरोहदो छिज्जदे आऊ॥ (57)
विषं भक्षण से अथवा विषवाले जीवों के काटने से, रक्तक्षय अर्थात् लहू (खून) जिसमें सूखता जाता है ऐसे रोग से अथवा धातुक्षय से, (उपचार से- लहू के सम्बन्ध से यहाँ धातुक्षय भी समझना चाहिए) भयंकर वस्तु के दर्शन से या उसके बिना भी उत्पन्न हुए भय से, शस्त्रों (तलवार आदि हथियारों) के घात से, ‘संक्लेश' अर्थात् शरीर वचन तथा मन द्वारा आत्मा को अधिक पीड़ा. पहँचाने वाली क्रिया होने से, श्वासोच्छ्वास के रूक जाने से, और आहार (खाना-पीना) नहीं करने से इस जीव की आयु कम हो जाती है। इन कारणों से जो मरण से अर्थात् शरीर छुटे उसे कदली घात मरण अथवा अकाल मृत्यु कहते हैं।
(पृ. 39, सटीका कर्मकाण्ड) अध्याय 2
अभ्यास प्रश्न 1. जीव के असाधारण भाव कितने हैं, एवं उनकी परिभाषा लिखो? 2. जीव का लक्षण क्या है? 3. उपयोग के कितने भेद तथा उसकी परिभाषा भी लिखिये ? 4. जीव के भेद-प्रभेदों का सविस्तार वर्णन करें ? 5. इन्द्रियों के भेद प्रभेद का सविस्तार वर्णन करो? 6. इन्द्रिय एवं मन का स्वामी कौन-कौन है? 7. विग्रहगति में गमन कैसे होता है ? 8. सिद्धजीव की गति कौन सी होती है? 9. जन्म के भेद एवं उसके स्वामी का कथन करो? 10. शरीर कितने होते हैं और उसके परमाणु (प्रदेशों) का वर्णन करो ? 11. कौन सा शरीर संसारी जीव के सतत् रहता है ?
12. लिंग कितने हैं, तथा उसके स्वामी कौन-कौन हैं ? __13.. अकाल मृत्यु किसके नहीं होती है, और किसके होती है ?
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