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________________ उत्तर - सौधर्म स्वर्ग के देव स्वयं या पर के निमित्त से ऊपर आरणअच्युत स्वर्ग तक छह राजू जाते हैं और नीचे स्वयमेव बालुकाप्रभा तीसरे नरक तक दो राजू, इस प्रकार 8/14 भाग होते हैं। आहारक शरीर द्वारा लोक का असंख्यातवाँ भाग स्पर्श किया जाता है। तैजस और कार्मण शरीर सर्वलोक का स्पर्श करते हैं। (9) काल-काल की अपेक्षा भी इन शरीरों में परस्पर पृथकत्व है। औदारिक मिश्र अवस्था को छोडकर तिर्यंच और मनुष्यों के औदारिक शरीर का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्य है। यह अन्तर्मुहूर्त अपर्याप्तक का काल है। अर्थात् तीन पल्य यह उत्कृष्ट आयु तो भोगभूमियाँ तिर्यंच और मनुष्यों की हैं। यहाँ से कोई मानव या तिर्यंच उत्कृष्ट भोगभूमि की आयु बाँधकर मरा और भोगभूमि में जन्मा तो आयु का प्रारम्भ विग्रहगति में ही हो गया - परन्तु विग्रहगति में कार्मण और निर्वृत्यापर्याप्तावस्था में औदारिक मिश्र काययोग रहता है- इसलिये इस अपर्याप्तावस्था के काल को घटा देने पर शेष अन्तर्मुहर्त कम तीन पल्य उत्कृष्ट काल औदारिक शरीर का है। वैक्रियिक शरीर का काल देवों की अपेक्षा है। देवों के मूल वैक्रियिक शरीर का जघन्य काल अपर्याप्त काल के अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष प्रमाण हैं। उत्कृष्ट अपर्याप्तकालीन अन्तर्मुहूर्त कम तैंतीस सागर प्रमाण है। उत्तर वैक्रियिक शरीर के उत्कृष्ट और जघन्य दोनों ही काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण हैं। लिंग (वेद) के स्वामी . नारक सम्मूर्छिनो नपुंसकानि।(50) The hellish beings and those who are 4640G Spontaneously generated are of a common or neuter sex. नारक और समूंछेन नपुंसक होते है। नरक में उत्पन्न होने वाले नारकी एवम् सम्मूर्छन जन्म से पैदा होने वाले सम्मूर्च्छन जीव नियम से नपुंसक ही होते है। नपुंसक वेद रूपी. नो कषाय के उदय से और अशुभ नामकर्म के उदय से नारकी एवं सम्मूर्च्छन जीव स्त्री व पुरूष न होकर नपुंसक होते हैं। इन जीवों के मनोज्ञ शब्द, गंध, रूप, रस और स्पर्श के सम्बन्ध से उत्पन्न हुआ स्त्री-पुरूष विषयक थोड़ा भी सुख 178 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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