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अग्नि ये सब अग्निकायिक जीव जानने के योग्य हैं।
वायुकायिक जीवों के भेदमहान् घनतनुश्चैव गुञ्जामण्डलिरुत्कलिः।
वातश्चेत्यादयो ज्ञेया जीवाः पवनकायिकाः॥ (65) वृक्ष वगैरह को उखाड़ देने वाली महान् वायु अर्थात् आँधी, घनवात, तनु, वात, गुञ्जा-गूंजनेवाली वायु, मण्डलि-गोलाकार वायु, उत्कलि-तिरछी बहने वाली वायु और वात-सामान्य वायु ये सब पवनकायिक जीव जानने के योग्य हैं।
- वनस्पतिकायिक जीवों के भेद___ मूलाग्रपर्वकन्दोत्था: स्कन्धबीजरूहास्तथा।
संमूर्छिनश्च हरिता: प्रत्येकानन्तकायिका॥(66) मूलबीज-मूल से उत्पन्न होने वाले अदरक, हल्दी आदि अग्रबीज-कलम से उत्पन्न होने वाले गुलाब आदि, पर्वबीज-पर्व से उत्पन्न होने वाले गन्ना आदि, कन्दबीज-कन्द से उत्पन्न सूरण आदि, स्कन्धबीज-स्कन्ध से उत्पन्न होने वाले ढाक आदि, बीज रूह-बीज से उत्पन्न होने वाले गेंहूँ,चना आदि तथा समूर्छिन अपने आप उत्पन्न होने वाली घास आदि वनस्पतिकाय प्रत्येक तथा साधारण दोनों प्रकार के होते हैं।
एकेन्द्रियादि तिर्यंचों की उत्कृष्ट अवगाहनायोजनानां सहस्रं तु सातिरेकं प्रकर्षतः। एकेन्द्रियस्य देहः स्यद्विज्ञेयः स च पद्मिनी ॥(143) त्रिकोशः कथित: कुम्भी शंखो द्वादशयोजनः ।
सहस्रयोजनो मत्स्यो मधुपश्चैकयोजनः॥(144)
एकेन्द्रिय जीव का शरीर उत्कृष्टता से कुछ अधिक एक हजार योजन विस्तार वाला है। एकेन्द्रिय जीव की यह उत्कृष्ट अवगाहना कमल की जानना चाहिये। दो इन्द्रिय जीवों में शंख बारह योजन विस्तार वाला है, तीन इन्द्रिय जीवों में कुम्भी-चिंउटी तीन कोश विस्तार वाली है, चार इन्द्रिय जीवों में भौंरा एक योजन-चार कोस विस्तार वाला है। और पांच इन्द्रिय महामच्छ
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