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________________ एक हजार योजन विस्तार वाला है। .ये उत्कृष्ट अवगाहना के धारक जीव स्वयंभूरमण द्वीप के बीच में पड़े हुए स्वयंभू पर्वत के आगे के भाग में होते हैं। मच्छ स्वयंभूरमणसमूद्र में रहता है। एकेन्द्रियादिक जीवों की जघन्य अवगाहनाअसंख्याततमो भागो यावानस्त्यंगुलस्य तु। एकाक्षादिषु सर्वेषु देहस्तावान् जघन्यतः॥(145) एकेन्द्रियादिक सभी जीवों का शरीर जघन्य रूप से घनागुल के असंख्यातवेंभाग प्रमाण है। एकेन्द्रिय जीवों में सर्वजघन्य शरीर सूक्ष्मनिगोदिया लब्ध्यपर्याप्तक जीव के उत्पन्न होने के तीसरे समय में होता है तथा उसका प्रमाण घनागुंल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। द्वीन्द्रियों में सर्वजघन्य शरीर अनुधरी का त्रीन्द्रियों में कुन्थु का, चतुरिन्द्रिय में कणमक्षिका का, और पंचेन्द्रिय में तण्डुलमच्छ का होता है। यद्यपि इन सबका सामान्य रूप से प्रमाण घनागुंल का असंख्यातवें भाग बराबर है तथापि वह आगे-आगे संख्यात गुणा-संख्यात गुणा है। - स्थावरादिजीवों की कुल कोटी. बावीस सत्त तिण्णिय, सत्त य कुलकोडियसयसहस्साहि। णेया पुढविदगागणि, वाउक्कायाण परिसंखा॥(113) पृथिवीकायिक जीवों के कुल बाईस लाख कोटी है। जलकायिक जीवों के कुल सात लाख कोटी हैं। अग्निकायिक जीवों के कुल तीन लाख कोटी हैं। और वायुकायिक जीवों के कुल सात लाख कोटी हैं। त्रस जीवों के भेद द्वीन्द्रियादयस्त्रसा:। (14) (Mobile or many sensed souls) with 2 senses etc; , दो इन्द्रिय आदि त्रस हैं। त्रसनाम कर्म के उदय से संसारी जीव त्रसकायिक होते हैं। इस अपेक्षा से त्रस जीव एक होते हुए भी इन्द्रियादि भेद से उनमें भी भेद पाये जाते हैं। 135 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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