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________________ कारण समस्त पदार्थों और उनके सम्पूर्ण गुणों तथा पर्यायों को स्पष्ट रूप से विषय करता है। सर्वज्ञ भगवान ही सम्पूर्ण सत्य के ज्ञाता होने से सत्य के सर्वोत्कृष्ट उपदेशक अरिहन्त ही होते हैं। अरिहन्त की दिव्य ध्वनि को सुनकर गणधर (गणपति, मुनिसंघ के अधिपति या आचार्य) उस दिव्यध्वनि से प्राप्त अर्थ को अंग प्रविष्ट और अंग बाह्य अथवा प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग रूप से विभाग या सम्पादन करते हैं। कहा भी है अरहंतभासियत्थं गणहरदेवेहिं गंथियं सम्म। पणमामि भक्तिजुत्तो सुदणाणमहोवहिं सिरसा।[2] जो अर्थरूप से अरहन्त देव के द्वारा जाना गया है, गणधरों के द्वारा जिसकी रचना हुई है, जो दो और अनेक भेदों में स्थित है, जो अंग प्रविष्ठ और अंगबाह्य के भेद से प्रसिद्ध है तथा जो अनंत पदार्थों को विषय करने वाला है, उस श्रुतज्ञान को भी नमस्कार करता हूँ। विश्व अनादि अनंत होने से मोक्षमार्ग अनादि है और मोक्षमार्ग को प्राप्त करने वाले भी अनादि से हैं। इसलिए तीर्थंकर, केवली, आचार्य, उपाध्याय, साधु, सिद्ध भी अनादि से होते आ रहे हैं, परन्तु वर्तमान अवसर्पिणी काल के आदि ब्रह्मा ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर पर्यन्त 24 तीर्थंकर हुए हैं। ऐसे 24 तीर्थंकर भूतकाल में भी अनंत हो गये हैं। विदेह.आदि शाश्वतिक कर्मभूमि में अभी भी सीमन्धर आदि तीर्थंकर विद्यमान हैं। ऐसे ही आगे भी भविष्यत् काल में तीर्थंकर आदि होंगे, परन्तु वर्तमान में इस युग के अंतिम 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर का शासन चल रहा है। भगवान महावीर का जन्म ईसा पू. 599 (विक्रम पूर्व, 542) में हुआ था। वे 30 वर्ष की किशोरावस्था में बाल ब्रह्मचारी रहते हुए ईसा पूर्व (569) वि.पू. (512) में सम्पूर्ण अन्तरंग-बहिरंग परिग्रह के साथ-साथ वस्त्र त्याग कर दिगम्बर दीक्षाधारण कर ली। 12 वर्ष की कठिन मौनपूर्वक तपस्या के बाद 42 वर्ष की आयु में ई.पू. (557) वि.पू. (500) को केवलज्ञान प्राप्त किया। 30 वर्ष तक विभिन्न स्थान में विहार करके धर्मोपदेश दिया। 527 ई.पू. (470 वि.पू.) में 72 वर्ष की आयु में पावापुरी के पद्म सरोवर से निर्वाण प्राप्त किया। यह समय चतुर्थ काल के अंतिम चरण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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