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________________ चतुष्टय में से किसी एक कषाय और नव नोकषायों का यथासंभव उदय होने पर आत्मा के जो निवृत्ति रूप परिणाम होते हैं, उसको 'क्षायोपशमिक चारित्र' कहते हैं। (7) संयमासंयम-अनन्तानुबंधी और अप्रत्याख्यान रूप आठ कषायों के स्पर्धकों का उदयाभावीक्षय तथा आगामी काल में उदय में आने वाले सर्वघाति स्पर्धकों का सदवस्थारूप उपशम, प्रत्याख्यान कषाय का उदय, संज्वलन कषाय के देशघाति स्पर्धकों का उदय और यथासंभव नोकषायों का उदय होने पर विरत-अविरत परिणाम उत्पन्न करने वाला क्षायोपशमिक संयमासंयम होता है। औदयिकभाव के इक्कीस भेद गतिकषायलिङ्गमिथ्यादर्शनाज्ञानासंयतासिद्धलेश्याश्चतुश्चतुस्त्र्येकैकैकैकषड्भेदाः। (6) . (The 21 are) 4 kinds of Condition. 4 passions, 3 sexes, 1 wrong belief, 1.ignorance, 1 vowlessness, 1 non-liberation, 6 paints. औदयिक भाव के इक्कीस भेद हैं- चार गति, चार कषाय, तीन लिंग, • एक मिथ्यादर्शन, एक अज्ञान, एक असंयम, एक असिद्धभाव, और छः लेश्यायें। (1) चार गति:- गति नामकर्म के उदय से आत्मा नरकादि भावों को प्राप्त होता है, इसलिए गति औदयिक है। जिस कर्म के उदय से आत्मा के नरकादि भावों की प्राप्ति होती है, वह गति है। वह गति नामकर्म चार प्रकार का हैनरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति। उसमें नरकगति नामकर्म के उदय से नरकगति प्राप्त होती है, तिर्यंचगति नामकर्म के उदय से तिर्यंचगति, 117 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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