SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ केवलज्ञान का विषय सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य। (29) (The subject matter) of perfect knowledge (is) all the substances (and all their) modifications. केवलज्ञान की प्रवृत्ति सब द्रव्य और उनकी सब पर्यायों में होती है। प्रत्येक जीव में अनन्त ज्ञान, दर्शन, सुख वीर्यादि अनन्त गुण हैं। परन्तु जैसे- धने बादल के कारण सूर्य उदित रहते हुए भी सूर्य की रश्मि छिप जाती है। उसी प्रकार कर्मरूपी धने बादल के कारण ज्ञान रश्मि तिरोहित हो जाती है, जिससे जीव अल्पज्ञ हो जाता है। परन्तु जैसे-जितने-जितने अंश में बादल हटता जाता है उतने-उतने अंश में सूर्य रश्मि प्रगट होती जाती है उसी प्रकार जितने-जितने अंश में ज्ञानावरणीय कर्मरूपी बादल हटता जाता है उतने-उतने अंश में ज्ञानरूपी सूर्य रश्मि प्रगट होती जाती है। जैसे- सम्पूर्ण बादल सूर्य के सामने हट जाता है तब सूर्य रश्मि पूर्णरूप से प्रगट हो जाता है उसी तरह सम्पूर्ण ज्ञानावरणीय कर्म हट जाता है तब सम्पूर्ण ज्ञान रश्मि प्रगट हो जाती है। इसे ही केवलज्ञान कहते हैं। यह केवल ज्ञान त्रिकालवर्ती समस्त लोक अलोक को प्रकाशित करता है। आचार्य अमृतचन्द्रसूरि ने पुरूषार्थसिद्धिउपाय में कहा है तज्जयति परं ज्योति: समं समस्तै रनन्तपर्यायैः। दर्पणतल इव सकला प्रतिफलति पदार्थमालिका यत्र॥(1) (पृ.उ.) जिसमें संपूर्ण अंनतपर्यायों से सहित समस्त पदार्थों की माला अर्थात् समूह दर्पण के तल भाग के समान झलकती है, वह उत्कृष्ट ज्योति अर्थात् केवलज्ञान रूपी प्रकाश जयवंत हो। संपुण्णं तु समग्गं, केवलमसवत्त सव्वभावगयं। लोयालोयवितिमिरं, केवलणाणं मुणेदव्वं ॥(460) (गो.जी 214) यह केवलज्ञान, सम्पूर्ण, केवल प्रतिपक्ष रहित, सर्व पदार्थ गत और 98 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy