SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * कर्म-सिद्धान्त : बिंदु में सिंधु * ८३ * योग्य क्षेत्र में पुण्य का बीजारोपण कैसे और क्यों करें ? ___जैसा बीज होता है, वैसा ही फल होता है' इस न्याय के अनुसार जैसे किसान वीज बोने से पहले बहुत ही विवेक और सावधानी रखता है, वैसे योग्य क्षेत्र में, बीज बोने से पहले और पीछे मुमुक्षु सम्यग्दृष्टि साधक को बहुत ही विवेक और सावधानी रखना आवश्यक है। जीवन-क्षेत्र में आत्म-भूमि पर शुभ कर्म (पुण्य) का बीज बोना-अशुभ योग से निवृत्त होकर एक दृष्टि से शुभ योगसंवर कहा गया है, किन्तु इसमें विधि, द्रव्य, पात्र और दाता की योग्यता का विचार करना अनिवार्य है। दान से केवल पुण्य ही नहीं होता, सम्यग्दृष्टि एवं शुद्धोपलक्षी दाता व्युत्सर्गतप, निःस्वार्थ-निष्कामभाव एवं सुपात्रात्मलक्षी सम्यग्दृष्टि से विसर्जन के रूप में भावपूर्वक दान करता है तो संवर और निर्जरा का लाभ भी प्राप्त कर सकता है। अन्ध-विश्वास, परम्परा, स्वार्थ-लालसा, प्राणिवधपूर्वक किया गया तामसदान या पुण्य सच्चे अर्थों में दान-पुण्य नहीं, वह अशुभ कर्म (पाप) बन्धक कार्य है। चिकित्सक और वधक दोनों की क्रिया सरीखी होने पर भी भावों के आधार पर पुण्य और पाप होता है। भगवतीसूत्र में कहा है-असंयत-अविरत को दिये गए दान से एकान्त पाप तभी होता है; जब वह दान मोक्षार्थ या देव-गुरु-धर्मबुद्धि से दिया गया हो, किन्तु उसी को पीड़ित और अनुकम्पापात्र समझकर दिये गए दान से पापकर्म नहीं होता; न ही निपिद्ध बताया गया है। संसार के समस्त अनुकम्पनीय प्राणियों पर अनुकम्पा करने से पुण्यबन्ध और सातावेदनीयरूप फल प्राप्त होता है। निर्जरा और पुण्य के पृथक्-पृथक् स्वरूप को विविध युक्तियों और प्रमाणों से सिद्ध किया गया है। पुण्य के भी लौकिक और पारमार्थिक दो भेद बताए गए हैं। कर्मविज्ञान ने यह भी सिद्ध किया है कि पापकर्मों के आचरण से आनन्द की अपेक्षा पुण्यकर्मों के आचरण में अधिक आनन्द है। पुण्याचरण के नौ भेदों का विस्तत स्वरूप. सक्रिय आचरण का उपाय तथा उनसे उभयलोक में होने वाली भौतिक और आध्यात्मिक उपलब्धियों की भी चर्चा की है। निर्जरा : अनेक रूप और स्वरूप .. कर्मों से संयुक्त होना वन्ध और वियुक्त होना निर्जरा है। निर्जरा और मोक्ष में अन्तर यह है कि 'निर्जरा में एक साथ, एक ही समय में सभी कर्मों का क्षय नहीं होता; जबकि मोक्ष में समस्त कर्मों का क्षय एक साथ ही हो जाता है। पूर्ववद्ध कर्मों में से जो कर्म उदय में आ जाते हैं, सुख-दुःखरूप फल देने के अभिमुख हो जाते हैं, उन्हीं का फल भोगने पर वे कर्म झड़ जाते हैं, इसी का नाम निर्जरा है। कर्मों की निर्जरा न हो तो आत्म-शुद्धि नहीं हो सकती और आत्म-शुद्धि न हो तो आत्मा में सोये हुए निजी गुण अभिव्यक्त व जाग्रत नहीं हो सकते। निर्जरा से पूर्व सर्वप्रथम जीव द्वारा पूर्वबद्ध कर्म उदय में आते हैं, फिर 'जीव उनके सुखरूप या दुःखरूप फल का अनुभव करता है, भोगता है, फल भोगने के पश्चात् उन कर्मों की निर्जरा हो जाती है, यानी वे कर्म आत्मा से पृथक् हो जाते (झड़ जाते) हैं। निर्जरा प्रक्रिया में जो अनुभाव फिलभोग) होता है. वह कर्म के नाम या स्वभाव के अनसार होता है। वेदना और निर्जरा भी एक नहीं है, क्योंकि कर्मों का वेदन (अनुभव) किया जाता है और निर्जीर्ण किया जाता है नोकर्मों का-कर्मरहितता का। यानी पहले कर्मों का वेदन (अनुभव) होता है, तत्पश्चात् जब उन कर्म-परमाणुओं का कर्मत्व नष्ट हो जाता है, तव निर्जरा होती है। अत: वेदना कर्म है, निर्जरा नोकर्म है। महावेदना और महानिर्जरा के विषय में शंका-समाधान - इसी प्रकार जो जीव महावेदना वाले हैं, वे सभी महानिर्जरा वाले नहीं होते। नरक के नैरयिक महावेदना वाले होने पर भी महानिर्जरा वाले नहीं होते जवकि श्रमण निर्ग्रन्थ चाहे महावेदना वाले हों या अल्पवेदना वाले फिर भी महानिर्जरा वाले होते हैं. क्योंकि वे उसे समभाव से शान्ति से सहन करते हैं; जबकि अनुत्तरौपपातिक विमानवासी देव अल्पवेदना और अल्पनिर्जग वाले होते हैं। शैलेशी अवस्था को प्राप्त अनगार अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले होते हैं। निष्कर्प यह है कि वेदना की अधिकता या अल्पता निर्जरा की अधिकता-न्यूनता का कारण नहीं है। निर्जग का मुख्य कारण है-सुख-दुःख को सहने की पद्धति और दृष्टि। नैरयिकों में जो मायी मिथ्यादृष्टि हैं, वे महाकर्म, महाआम्रव, महाक्रिया और महावेदना वाले होते हैं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy