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* ५३२ * कर्मविज्ञान भाग ९ : परिशिष्ट *
सूत्ररुचि-जो सूत्र का अवगाहन करता हुआ अंगश्रुत से या अनंग-प्रविष्ट श्रुत से सम्यक्त्व का अवगाहन करता है अथवा शीघ्र ही उसमें रुचि (तत्त्व श्रद्धा) उत्पन्न होती है, उस व्यक्ति को और उसके उस सम्यक्त्व को सूत्ररुचि जानना चाहिए।
सेवार्त (छेवट्ट) संहनन-जिस संहनन में परस्पर पर्यन्तमात्र के स्पर्शरूप सेवा को प्राप्त हड्डियाँ सदा चिकनाहट के मर्दनरूप परिशीलना की इच्छा किया करती हैं, उसे सेवार्त संहनन कहते हैं। इसके कारणभूत नामकर्म को भी सेवार्त संहनन- नामकर्म कहते हैं। ..
स्कन्ध-जो समस्त अंशों से परिपूर्ण हो, वह। स्कन्ध अनन्त प्रदेशों से युक्त होता है, जो लोक में छेदा-भेदा जा सकता है।
स्कन्ध देश-प्रदेश-पूर्वोक्त विवक्षित स्कन्ध के अर्ध-भाग को स्कन्ध-देश और उसके आधे से आधे भाग को स्कन्ध-प्रदेश कहते हैं। ____ स्तिबुक-संक्रम-(I) अनुदीर्ण प्रकृति के दलिक का उदय-प्राप्त प्रकृति में विलय होना स्तिबुक-संक्रम है। (II) विवक्षित प्रकृति का समान स्थिति वाली अन्य प्रकृति में संक्रमण होना भी स्तिबुक-संक्रमण है।
स्तेन-प्रयोग-चोर को चोरी करने के लिए स्वयं उद्यत या प्रेरित करना स्तेन-प्रयोग है। अथवा चोर को चोरी करने के लिए उपकरण देना भी स्तेन-प्रयोग है। इसे स्तेनानुज्ञा भी कहा जाता है।
स्तेनानुबन्धी : स्तेयानुबन्धी-अहर्निश प्राणि-हिंसा के कारणभूत पर-द्रव्यहरण (चोरी, डाका, लूटपाट, शोषण, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, स्मगलिंग, कर-चोरी आदि) में चित्त संलग्न रहता है, इसे स्तेनानुबन्धी या स्तेयानुबन्धी रौद्रध्यान कहते हैं।
स्तेय-त्याग : स्थूल-अदत्तादान-विरमण-व्रत-दूसरे की मालिकी की गिरी हुई, रखी हुई, विस्मृत आदि वस्तु को बिना पूछे, बिना दी हुई वस्तु को लोभवश उठा कर, चुरा कर अपने कब्जे में करना, उस पर अपना स्वामित्व स्थापित करना स्तेय (चोरी) है। इस प्रकार के स्थूल-स्तेय (जिससे कानून से दण्ड मिले, समाज के द्वारा निन्दित हो) कहलाता है। उसका त्याग करना स्तेय-त्याग या स्थूल-अदत्तादानविरमणव्रत कहलाता है। अचौर्याणुव्रत का यह नामान्तर है।
स्त्यानर्द्धि : स्त्यानगृद्धि-जिस निद्रा के उदय से सुप्तावस्था में आत्म-शक्तिरूप ऋद्धि पिण्डीभूत हो जाती है, वह स्त्यानर्द्धि निद्रा है। यह दर्शनावरणीय कर्म का एक प्रकार है। इस निद्रा के सद्भाव में प्रथम संहनन वाले में अर्ध-चक्री के समान बल उत्पन्न हो जाता है।
स्त्रीकथा-स्त्रियों के वेश-भूषा, नृत्य, हावभाव तथा काम-वासनोत्तेजक अंगोपांगों का एवं विविध देश की ललनाओं की काम-प्रकृति आदि का वर्णन करना स्त्रीकथा है।
स्त्रीपरीषह-सहन-उद्यान, भवन आदि एकान्त स्थानों में यौवनमद एवं मदिरापान आदि से उन्मत्त स्त्रियों द्वारा बाधा पहुँचाने अथवा किसी कामोन्मत्त नारी द्वारा रति-याचना करने पर भी कछुए के समान अपनी इन्द्रियों और मन के काम-विकार को
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