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* पारिभाषिक शब्द-कोष * ३९१ *
अनिवृत्तिकरण-जिस विशिष्ट आत्म-परिणाम के द्वारा जीव मिथ्यात्व-ग्रन्थि का भेदन करके सम्यक्त्व-प्राप्ति होने तक निवृत्त नहीं होता हो, वह।
अनिवृत्तिकरण गुणस्थान-जिस गुणस्थान में विवक्षित एक समय के भीतर वर्तमान सभी जीवों के परिणाम परस्पर भिन्न न हो कर समान हों, वह। ____ अनिह्नव-आचार-जिस गुरु से शास्त्र पढ़ा हो, उसी के नाम को प्रगट करना, या जिस आगम या ग्रन्थ को पढ़ कर ज्ञानवान् हुआ हो, उसी ग्रन्थ का नाम बताना। ज्ञानाचार का एक अंग।
अनुकम्पा-दुःखित-पीड़ित प्राणी को देख कर उसके अनुकूल कम्पन होना-मन में खेद होना, उसके उद्धार की चिन्ता करना।
अनुज्ञा-दूसरे जिज्ञासुओं को स्वयं सूत्र और अर्थ पढ़ाना (प्रदान करना) तथा अन्य प्रदान करने वालों की अनुमोदना करना। गुरु आदि से आज्ञा प्राप्त करना।
अनुत्तरौपपातिक (सूत्र)-उपपात-जन्म ही जिनका प्रयोजन है, वे औपपातिक (देव)। प्रत्येक तीर्थंकर के समय में उत्कृष्ट (अनुत्तर) तप की साधना करके पाँच अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले महाभाग महामुनियों के चरित्र का वर्णन करने वाला नौवां अंगसूत्र।
अनुदय बन्धोत्कृष्ट-जिन कर्मप्रकृतियों की विपाकोदय के अभाव में बन्ध के वाद उत्कृष्ट स्थिति (दीर्घकाल) तक सत्ता पाई जाती है।
अनुपक्रम-आयु के अपवर्तन के कारणभूत विष, शस्त्र, अग्नि आदि की दुर्घटना उपस्थित होने पर भी आयुष्य पूर्ण न होना-मृत्यु न होना। अथवा आयुष्य टूटने के कारणों का उपस्थित न होना। . अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनय-(I) वस्तु की आन्तरिक शक्ति-विशेष से निरपेक्ष हो कर सामान्यरूप से निरूपण करने वाला नय। (II) उपाधिरहित गुण-गुणी के भेद को विषय करने वाला नय। जैसे-जीव के केवलज्ञानादि गुण। ___ अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय-(I) जो नय संक्लेश (संयोग) युक्त वस्तु के सम्बन्ध को विषय करता है, वह। जैसे-जीव का शरीर। (II) अबुद्धिपूर्वक होने वाले क्रोधादि भावों में जीव के भावों की विवक्षा करना।
अनुपयोग-उपयोग का अभाव। उपयोग से रहित हो वह। अनुपरति-उपरति = निवृत्ति (विषयाभिलाषाओं) का अभाव। अशान्ति।
अनुपलब्धि-उपलब्धि = प्राप्ति (लाभ) का अभाव, अथवा प्रत्यक्ष का अभाव। .. अनुभव-(I) (वेदनरूप) कर्मफल का वेदन करना, भोगना। (II) वस्तु के यथार्थ स्वरूप की उपलब्धि, पर-पदार्थों से विरक्ति, आत्म-स्वरूप में रमण और हेय-उपादेय-विवेक को अनुभव कहते हैं। स्मृति से भिन्न ज्ञान।
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