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परिशिष्ट २
कर्मविज्ञान का पारिभाषिक शब्द-कोष
अकर्म-कर्मरहित, या अबन्धक कर्म। अकर्मक-मुक्त-सिद्ध-परमात्मा। अकर्मता-आत्मा के साथ कर्म का बन्ध न होना।
अकर्मभाव-कर्मरूप में परिणत होने के दूसरे समय में ही उन कर्मों का अकर्मभाव को प्राप्त हो जाना।
अकृतकर्म-जिस कर्म का, जिसने बन्ध नहीं किया है, वह। अकल्प्य–अग्राह्य (विशेषतः श्रमणवर्ग के लिए)। अकर्मभूमि-असि-मसि-कृषि आदि कर्मों से रहित भूमि = भोगभूमि।
अकषाय-राग-द्वेषरूप उत्तापरहित, क्रोधादि कषायरहित जीव की अवस्था, या ईर्यापथिक क्रिया।
अकषाय-संवर-कषायों से होने वाले कर्मास्रव का निरोध करना। अकर्मा-बन्धकारक कर्मों से रहित होना। अकषायत्व-चारित्रमोहनीय के उपशम या क्षय से प्राप्त लब्धि से होने वाली अवस्था। अकरण वीर्य-जो वीर्य (शक्ति) केवल लब्धिरूप में हो, क्रियारूप में नहीं।
अकामनिर्जरा-कर्मनाश की अनिच्छा से, निरुद्देश्य क्षुधा आदि कष्टों को विषमभाव से ही सहन करना, भोगना। . अकाममरण-बालमरण, अज्ञानपूर्वक विषयासक्ति आदि से होने वाला मरण।
अकाल मृत्यु-असमय में = बद्ध आयु स्थिति का अकस्मात् पूर्ण हो जाना, या आयुकर्म की उदीरणा होना। दुर्घटना आदि से मृत्यु हो जाना।
अक्रिया-क्रिया का सर्वथा अभाव हो जाना।
अक्रियावाद-जीवादि पदार्थों में क्रिया या उनके अस्तित्व का एकान्तरूप से अभाव मानने वाला एक वाद, मिथ्यात्व का एक भेद। परलोकविषयक क्रिया को न मानने वाला वाद।
अकुशल (कर्म)-दुःख देने वाले या दुःखहेतुक पापकर्म।
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