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________________ * ३६६ * कर्मविज्ञान: परिशिष्ट * (७) मोक्षमार्ग का महत्त्व और यथार्थ स्वरूप जा सकता Y. पृष्ठ १५१ से १८८ तक मंजिल और मार्ग का निश्चय करना आवश्यक १५१, यात्रा और भटकने में क्या अन्तर है ? १५१, विवेक से रहित और सहित की यात्रा में बहुत अन्तर १५१, कौन-सी और कैसी है यह यात्रा ? १५२, अध्यात्मयात्री को मोक्ष का यथार्थ मार्ग पाना अत्यावश्यक है १५३. सुत्रकृतांग- प्रतिपादित प्रशस्तभाव (मोक्ष) मार्ग का विश्लेषण १५३, प्रशस्त भावमार्ग (मोक्षमार्ग) की पहचान के लिए तेरह पर्यायवाची शब्द १५४, निर्वाणमार्ग : माहात्म्य, द्वीपसम आधारभूत साध के लिए उपादेय १५५. मोक्षमार्ग की विशेषता एवं सर्वकर्मक्षय कराने में सफलता नाग पर श्रद्धापूर्वक गति - प्रगति करना मुमुक्षु का कर्त्तव्य १५८, मोक्षमार्गी लिए सावना के तेरह सूत्र १५८, साधन शुद्ध होने पर ही शुद्ध साध्य प्राप्त किया सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र-तप, इन चारों का समायोग ही मोक्षमार्गी १६१, दर्शन, ज्ञान और चारित्र से पूर्व सम्यक् शब्द क्यों ? १६२, प्रत्येक आत्मा में ज्ञान - दर्शन - चारित्र की त्रैकालिक सत्ता है १६२, ज्ञानादि गुण और गुणी आत्मा का अविनाभावी सम्बन्ध है १६३, ज्ञान से पूर्व सम्यक शब्द जोड़ने का कारण १६३, दर्शन से पूर्व सम्यक् शब्द जोड़ने का कारण १६४, मिथ्यादर्शन - ज्ञान - चारित्र मोक्ष के अंग या साधन नहीं हैं १६५, सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान पहेल कौन, पीछे कौन? १६५, मोक्ष के तीनों साधनां की परिपूर्णता कब और कैसे ? १६७, मोक्षमार्ग के विषय में अन्य दर्शनों और जैनदर्शन का दृष्टिकोण १६८, केवल श्रद्धा व ज्ञान से भी मोक्ष की प्राप्ति सम्भव नहीं १६८, तीनों का समन्वय एवं सम्यक्ता आवश्यक १६९, सम्यग्दर्शन क्या है, क्या नहीं ? १७१, सम्यग्दृष्टि की दृष्टि में धर्म आत्म-दृष्टिपरक धर्म है १७१, एकान्त ज्ञानवाद मोक्ष प्राप्ति का साधन नहीं: क्यों और कैसे ? १७२, एकान्त ज्ञान और तप दोनों ही मोक्ष-प्राप्तिकारक नहीं १७३, ज्ञान और क्रिया दोनों संयुक्त होने पर मोक्ष के साधन हैं १७४, अकेला सम्यक्चारित्र या समत्व भी मोक्ष का मार्ग है: क्यों और कैसे ? १७५, मोक्ष-साधक - चारित्र गुणों के विषय में त्रैकालिक तीर्थंकरों का एकमत १७६, सम्यक्चारित्र के व्यवहारदृष्टि से लक्षण १७६, सम्यक्चारित्ररूप मोक्षमार्ग के सन्दर्भ में एषणासमिति विवेक-निर्देश १७७, मोक्षमार्ग के सन्दर्भ में भाषासमिति विवेक-निर्देश १७८, चारित्र-शुद्धि के लिए विवेकसूत्र १७८, मोक्षमार्ग से भ्रष्ट या विचलित करने वाले मतवादी १७९. सस्ते, सुगम, आकर्षक मोक्ष प्राप्ति के ये मार्ग १८१, सचित्त जल-स्नान एवं जल-प्रयोग से मोक्ष नहीं होता : क्यों, किसलिए ? १८२, अग्निहोत्रक्रिया से भी मोक्ष-प्राप्ति नहीं होती १८३, जल-स्नान और अग्निहोत्र आदि संसार के मार्ग हैं, मोक्ष प्राप्ति मार्ग नहीं १८४, केवल स्व-मत स्वीकार से सर्वदुःख-मुक्ति का आश्वासन कितना झूठा? १८५, मुक्ति का सस्ता नुस्खा : स्व-पर-वंचनामात्र है १८६, केवल तत्त्वज्ञान से कैसे मुक्ति सम्भव ? १८६, कर्मबन्ध के कारणों को दूर किये बिना सर्वदुःख-मुक्ति कैसे होगी ? १८७, प्रथम प्रबल कारण : सन्धि की अनभिज्ञता १८७, द्वितीय प्रबल कारण: धर्म-विषयक अज्ञान १८८ । (८) निश्चयदृष्टि से मोक्षमार्ग : क्या, क्यों और कैसे ? पृष्ठ १८९ से २२० क निश्चय मोक्षमार्ग है- आत्मा का दर्शन, ज्ञान और आचार में परिणमन १८९, विभिन्न धर्मग्रन्थों में आत्म-प्रधान निश्चयदृष्टि से मोक्षमार्ग के लक्षण १८९, आत्मा को सर्वथा विस्मृत करके केवल दूसरों को मानने, जानने और सुधारने का प्रयत्न मोक्षमार्ग नहीं १९१, निश्चयदृष्टि से मोक्षमार्ग : स्वरूप, उद्देश्य और भेदविज्ञानरूप १९१, मोक्षमार्ग के दो रूप : स्वरूप, समन्वय, साध्य-साधनरूप और एकान्तवाद से हाि १९२, मोक्षमार्ग में आत्मा (जीव ) की ही प्रमुखता और प्राथमिकता क्यों ? १९४, अन्य सभी तत्त्वों का मूलाधार जीव ही है १९६. जीव के ज्ञान के साथ अजीव का बोध आसान १९६, जीव से पहले अजीव को स्थान क्यों नहीं ? : एक शंका-समाधान १९७, सभी शुभाशुभ क्रियाओं का आधार जीव है १९७, आत्मा अच्छा-बुरा, पुण्य-पाप करने में स्वतंत्र १९८, आत्म-स्वरूप की उपलब्धि का रहस्य १८९, कर्मबन्ध से छुटकारा दिलाने हेतु निश्चय मोक्षमार्ग पर दृष्टि जरूरी १९९, जहाँ आत्मा है, वहीं उसका मार्ग और मोक्ष रहना चाहिए २००, बाह्य क्रियाएँ या बाह्य तप आदि साक्षात् मोक्ष के अंग नहीं हो सकते २०२, शुद्धोपयोग से ही मोक्ष प्राप्ति, शुभ-अशुभ उपयोग से नहीं २०२, निश्चयदृष्टि से सम्यग्दर्शन : आत्म-स्वरूप पर श्रद्धान या विश्वास २०२, स्व-स्वरूपोपलब्धि की पहचान : भेदविज्ञान से ही २०२, जैनदृष्टि से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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