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* विषय-सूची : सातवाँ भाग * ३५३ *
साधक मरणभय से नहीं डरता ८८, जुगुप्सा : अर्थ, स्वरूप एवं कारण ८९, वेदत्रय नोकषाय : क्या और कैसे? ९०, वेदत्रय नोकषाय बन्ध (आम्रव) के कारण ९१, वेद नोकषाय से बचने के उपाय : संवर-निर्जरा का लाभ ९१। (४) कामवृत्ति से विरति की मीमांसा
पृष्ठ ९२ से ११७ तक क्या कामवृत्ति मौलिक मनोवृत्ति है ? ९२, जैनदृष्टि से काम के दो रूप ९२, कामवासना से जीवन का सर्वनाश सम्भव ९२, उच्छृखल कामभोगों पर नियंत्रण अत्यावश्यक ९२, कामवृत्ति के प्रमुख उत्पादक ९३, कामवृत्ति को जगाने में मूल कारण : आन्तरिक ९३, कामवासना के भड़काने में कारण : अशुभ संस्कार
और निमित्त ९४, निमित्त मिलते ही कामवासना के संस्कार भड़कते हैं ९४, जैमिनी ऋषि को निमित्त ने पछाड़ दिया ९५, सिंह-गुफावासी मुनि को रूप का निमित्त ले डूबा था ९६, कोमल केश-स्पर्श अधःपतन का कारण बना ९६, अन्तर्मन में निहित काम-संस्कार निमित्त मिलते ही भड़क उठे ९६, अज्ञात मन में निहित्त कुसंस्कारों ने कामोत्तेजित किया ९७, निमित्त ने सुकुमालिका साध्वी की कामाग्नि प्रज्वलित की ९७, ब्रह्मचर्य-सिद्धि के लिए नौ गुप्तियाँ, दसवाँ कोट ९८, इन निमित्तों से न बचने का दुष्परिणाम ९८, कामोत्तेजक के दृश्य निमित्तों से बचना आवश्यक ९९, काम-संवर-साधक इन निमित्तों से बचे ९९, अपरिपक्व-साधक के लिए अशुभ निमित्तों से बचना आवश्यक १00, उपादान शुद्ध व दृढ़ हुए बिना निमित्तों की उपेक्षा करना ठीक नहीं १00, उपादान शुद्ध व दृढ़ हुए बिना कामवृत्ति पर विजय पाना कठिन १00, कामवृत्ति पर विजय पाने के मुख्य दो उपाय १०१, साधनाकाल में भ्रान्तिवश निमित्ताधीन न हो १०१, कामविकार के निमित्त कहीं भी मिल सकते हैं १०१, उपादान को शुद्ध एवं सुदृढ़ बनाने के उपाय १०२, साध्य पर दृढ़ रहें : मोक्षलक्ष, धर्मपक्ष १०२, संवर और निर्जरा दोनों उपादान शुद्धि के लिए अपेक्षित हैं १०३, कामवृत्ति पर विजय के लिए निरोध और शोधन दोनों जरूरी १०३, शुद्ध उपादान वाला व्यक्ति कामवृत्ति का तुरन्त संवर कर लेता है १०३, रामकृष्ण परमहंस की कामवृत्ति-निरोध की परीक्षा १०३, विभूतानन्द जी ने तुरन्त काम-संवर कर लिया १०४, कामविजेता स्थूलिभद्र उत्तेजक निमित्तों के मिलने पर भी न डिगे १०४, विजय सेठ-विजया सेठानी ब्रह्मचर्य में दृढ़ रहे १०५, सुदर्शन सेठ कामोत्तेजक निमित्त मिलने पर तुरन्त सँभल गए १०५, इन आदर्श साधकों का अनुकरण नहीं करना है १०५, काम-संवर का तृतीय उपाय : परलोकदृष्टि एवं पापभीरुता १०५, काम-संवर का चौथा उपाय : परमेष्ठी-शरण १०६, काम-संवर का पंचम उपाय : दुष्कृतगर्दा, आलोचना, निन्दना १०६, इनसे वेदमोहनीय कर्म की निर्जरा होने से आत्म-शुद्धि का मार्ग प्रशस्त १०६, आत्म-निन्दना एवं गर्दा के सुपरिणाम १०७, उत्कृष्ट पश्चात्ताप और प्रायश्चित्त से आत्मा शुद्ध हो गई १०७, काम-संवर का छठा उपाय : सुकृतानुमोदना १०७, उपादान शुद्ध होने पर भी निमित्त मिले तो प्रायश्चित्त से शुद्ध हो १०८, निमित्तों से बचने के लिए निम्नोक्त नियमों का पालन करे १०८, विजातीय के विकारी दर्शन से ब्रह्मचर्य-भंग होना सम्भव १०८, ब्रह्मचर्यनिष्ठ संन्यासी त्रिलोकनाथ जी का निमित्त मिलते ही पतन १०८, कामराग से सर्वथा निवृत्ति के लिए आध्यात्मिक उपायों का आलम्बन १०९, परमात्म-भक्ति से अकामसिद्धि
और कषाय-नोकषाय नाश १०९, रामदुलारी परमात्म-भक्ति से पवित्र बनी १०९, नरसी मेहता को पत्नी-वियोग का दुःख परमात्म-भक्ति से मिटा ११0, त्रिविध सत्संग से कामवासना से विरति ११0, कामवृत्ति-निरोध का अमोघ उपाय : भावनाओं से आत्मा को भावित करना ११०, अकामसिद्धि के कतिपय प्रयोग १११, कामवृत्ति-नियंत्रण : इन्द्रिय और मन के विषयों पर राग-द्वेष न करने से ११२, ध्यानयोग द्वारा कामवृत्ति पर नियंत्रण ११२, योग-साधना की दृष्टि से कामवृत्ति-नियंत्रण : एक अनुचिन्तन ११२, ये निर्दोष चिकित्साएँ : काम-नियंत्रण में सहायक ११३, बाह्य-आभ्यन्तरतप भी कामवृत्ति पर नियंत्रण में सहायक ११४, तप और आहार-शुद्धि से कामोत्तेजना पर नियंत्रण ११४, कामवृत्ति का दमन या शमन करने में उपयोगी सूत्र ११४, लज्जा से भी कामवासना पर नियंत्रण सम्भव ११५, कुतूहलवृत्ति : काम की जननी ११५, मनोनीत सत्कार्य में मन लगाने से कामवासना शान्त होती है ११५, अब्रह्म-सम्बन्धी कृत पापों का पुनः-पुनः स्मरण उचित नहीं ११६, कामवासना दुष्कृत्य का तुरन्त या उसी दिन प्रतिक्रमण करो ११६, गुरु-कृपा भी काम-शमन में सहायक ११६।
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