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* ३५२ * कर्मविज्ञान : परिशिष्ट *
प्रत्येक पहलू को जानना और उस पर विजय पाना है ४१, कषायमुक्ति : परिणाम, उपाय और कारणों का दिग्दर्शक यंत्र ४२, अकषाय-संवर का एक उपाय : उदासीनता-अलिप्तता ४३, पृथ्वीचन्द्र की सांसारिक प्रवृत्तियों के प्रति निर्लिप्तता कैसी थी? ४३, भरत चक्रवर्ती की कषायों से निर्लिप्तता का रहस्य ४४, भरत चक्रवर्ती का अकषाय के विषय में चिन्तन ४५, कषाय-विजय के लिए प्रति क्षण जागृति आवश्यक ४६, प्रवृत्तियों में सर्वत्र कषाय-विजय का ध्यान रहे ४६, अकषाय-संवर की साधना के लिए दो उपाय ४७, अन्तर में उदित कषाय को निष्फल करने का स्पष्टीकरण ४७, क्रोध को कैसे सफल कर देता है मानव? ४७, क्रोध का तत्काल शमन करने के बजाय सफल करने का दुष्परिणाम ४८, सामान्य क्रोध भी विचारणा की खुराक देने से प्रबलतर हो जाता है ४९, क्रोध को सफल करने से नये कर्मों के उदय को अवकाश ४९, विभिन्न कषायों की गुलामी से आत्मघातक पुरुषार्थ का सिलसिला ४९, कषाय-निरोध का दूसरा उपाय ५0, प्रदेशोदय का चमत्कार ५१, छद्मस्थों के लिए कषायों के क्षय आदि का उपाय ५१, विपाकोदय को रोकना कैसे हो? ५१, कषायकर्मों के विपाकोदय को रोकना कषाय को जाग्रत होने से रोकना है ५१, कुछ अनुप्रेक्षाओं, भावनाओं से कषाय कर्मों का निरोध सम्भव ५२, दूसरों के प्रति क्रोधादि करके अपने अन्तर को मत बिगाड़ो ५३, क्रोधादि करने से सामने वाले में असद्भाव, अप्रीति और सेवाभाव हानि होती है ५३, क्षमादि की आराधना करके दुर्लभतम जिन-वचन-प्राप्ति को सफल करना चाहिए ५३, पद-पद पर क्रोधादि करने वाले में वीतराग धर्म की समझ कहाँ ? ५४, पुण्य बेचकर कषायों को खरीदने से सावधान ५४-५५। (३) कषायों और नोकषायों का प्रभाव और निरोध
___ पृष्ठ ५६ से ९९ तक ___ कषाय और नोकषाय क्या हैं? वे क्या अनिष्ट करते हैं ? ५६, कषाय और नोकषाय के प्रकार ५७, क्रोध : प्रत्यक्ष ही सब कुछ बदलने वाला तस्कर ५७, शूद्र जन्मजात चाण्डाल, पर क्रोधी कर्म से चाण्डाल ५८, अकषाय-संवर को अपनाने से क्रोध शान्त हो गया ५९, एक क्षण का तीव्र क्रोध करोड़ पूर्व में अर्जित तप और चारित्र को नष्ट कर डालता है ६०, उत्पन्न क्रोध स्वयं का भी नाश करता है और दूसरों का भी ६०, तीव्र क्रोध से सारी आत्म-शक्ति और ऊर्जा-शक्ति नष्ट कर दी ६१, अग्निशर्मा क्रोधी और क्षमावीर गुणसेन ६१, अकषाय-संवर ने स्वयं को तथा क्रोधी गुरु को केवली बनाया ६२, प्रचण्ड क्रोध से वैर-परम्परा और क्रूर कर्मबन्ध ६३, अकषाय-संवर एवं समभाव से कर्मक्षय ६४, मान कषाय : आत्म-गुणों के विकास में कितना बाधक ? ६५, बाहुबली मुनि मान कषाय में कैसे लिप्त हुए? ६५, मान कषाय को कौन पण्डित आश्रय देगा? ६६, मान कषाय की पहचान ६७, मान कषाय से कितनी हानि, कितना पतन ? ६७, धन-सम्पत्ति आदि सब पूर्वकत पुण्य के फलस्वरूप मिलते हैं ? ६८, मद करने वाले को हीन या विपरीत दशा प्राप्त होती है ६९, मान कषाय की उत्पत्ति में निमित्त कारण ७०, जात्यभिमान से नीच गोत्र का बन्ध ७0, जातिमद के कारण मेतार्य चाण्डाल जाति में उत्पन्न हुए ७१, कुलाभिमान के कारण भगवान महावीर को देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में रहना पड़ा ७१, बलमद के कारण शक्ति का दुरुपयोग करने वाले नरकगामी होते हैं ७२, बाहुबली ने अपनी शक्ति का आत्म-हित में सदुपयोग किया ७२, रूपमद का दण्ड : सनत्कुमार चक्री ७२, तपोमद भी कितना अनिष्टकारक ? ७३, लाभमद : जीवन को दुर्गति और आर्तध्यान में डालने वाला ७३, ज्ञान का मद भी मनुष्य को ज्ञानवृद्धि से वंचित कर देता है ७४, ऐश्वर्यमद का त्याग करना ही श्रेयस्कर है ७४, मान विजय से संवर और निर्जरा का लाभ ७५, माया कषाय के अनेक रूप और स्वरूप ७५, माया से घोर पापकर्मबन्ध तथा दुर्गति-प्राप्ति ७५, बहुधा स्त्रियाँ माया-कपट करने में चतुर ७६, माया कषाय से आत्म-गुणों की कितनी हानि ? ७६, सरल आत्मा शुद्ध होती है, उसी में धर्म टिकता है ७७, माया कषाय से बचने के उपाय और लाभ ७७, लोभ कषाय : समस्त दुर्गुणों और दोषों की खान ७७, पाप का बाप लोभ : एक ज्वलन्त दृष्टान्त ७८, लोभ विजय के अनूठे उपाय ७९, कपिल ने लोभ पर विजय प्राप्त करके केवलज्ञान पाया ७९, लोभ विजय से आत्म-शान्ति, सन्तोष ८0. नोकपाय : स्वरूप और अर्थ ८१, हास्य नोकषाय : स्वरूप और कटु फल ८१, रति-अरति-नोकपाय : क्या और कैसे? ८२, शोक नोकपाय : स्वरूप और हानि ८३, भय नोकषाय : क्या, कितने प्रकार एवं बचने का उपाय? ८४, भय मोहनीय कर्म : संवर और निर्जरा में बाधक ८४, भय से साधना में कितनी हानि, कितनी क्षति? ८५, भय के मुख्य सात निमित्त कारण ८६, मरणभय : किसको होता है, किसको नहीं? ८७, सत्यनिष्ठ
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