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________________ * ४६ * कर्म-सिद्धान्त : बिंदु में सिंधु * नहीं ? हैं तो कितने हैं ? इनका एक दूसरे द्वार से क्या सम्बन्ध है ? इन पाँचों द्वारों के कितने-कितने प्रकार हैं ? इन शंकाओं का युक्तिसंगत समाधान करने हेतु प्रस्तुत निबन्ध में चर्चा की गई है। आत्मारूपी भवन का मालिक सांसारिक जीव भी संसार की क्षणिक सुखदायिनी वायु के स्पर्श तथा सांसारिक वासनाओं की हवाएँ लेने के लिए भवन के मिथ्यात्वादि पाँचों द्वार खोलकर बैठे तो कपाय, प्रमाद, मिथ्यात्व, अव्रत और योग की आँधियाँ आए बिना और आत्म-भवन दूषित, गंदा और तमसाच्छन्न हुए बिना कैसे रह सकता है ? वैसे तो कर्मों के आकर्षण के लिए सर्वप्रमुख दो ही द्वार हैं-योग और कषाय। योग आस्रव चंचलता और चपलता का और कषाय आस्रव गंदगी, अन्धेरा और मलिनता का प्रतीक है। त्रिविध योगों की चंचलता का प्रेरक है-अविरति आम्रव। मन, वचन और काया की चंचलता के पोछे प्रेरणा अविरति की ही होती है। अविरति की प्रबलता-मंदता क्रमशः त्रियोग की वहिर्मुखी-अन्तर्मुखी प्रवृत्ति पर निर्भर है। बाह्य-त्याग करने पर भी अन्तर में आकांक्षाओं की घटा से चंचलता कम नहीं होती। आकांक्षाएँ शान्त न होने के पीछे मूल कारण मिथ्यात्व है। अविरति और मिथ्यात्व आसव के रहते प्रमाद भी इनका सहयोगी बन जाता है। परन्तु योगी की चंचलता को बढ़ाने में कषाय सभी आम्रवों से प्रबल है, क्योंकि योगों की चपलता से कर्म-परमाणु आकृष्ट होते हैं और कषायों के कारण वे टिके रहते हैं। योगों में चंचलता पैदा होती है पूर्वोक्त चार भावानवों से, अतः उसे रोकने के लिए इन चारों आम्रवों से सावधान रहना और इनके प्रतिपक्षी को अपनाना आवश्यक है। योग आनव : स्वरूप, प्रकार और कार्य ____ आस्रव के मिथ्यात्वादि पाँच कारणों में योग अन्तिम कारण है। फिर भी इसे प्रथम स्थान दिया गया है, क्योंकि प्रथम क्षण में कर्म-स्कन्धों का आगमन (आम्रव) योग के माध्यम से ही होता है, बन्ध उत्तर क्षण में ही होता है। सिद्धान्त की दृष्टि से भी आस्रव में योग की और बन्ध में कषाय की प्रधानता है। 'तत्त्वार्थसूत्र' में योग को ही आम्रव कहा गया है। मिथ्यात्वादि अन्य कारणों को प्रधानता न देकर आस्रव में योग को प्रधानता इसलिए दी गई है कि मिथ्यात्व आदि पाँच कारणों में से प्रारम्भ के चार कारण तो उत्तरोत्तर गुणस्थान क्रम से आरोहण करते समय छूट जाते हैं, कषाय दशम गुणस्थान तक रहता है, ग्यारहवें से चौदहवें गुणस्थान के अन्तिम समय से पूर्व तक योग रहता है। दूसरे शब्दों में कहें तो संसारी जीव के साथ प्रथम गुणस्थान से लेकर चौदहवें अयोगीकेवली गुणस्थान में भी कर्मों से सर्वथा मुक्त होने के पूर्व क्षण तक योग रहता है। इस प्रकार योग आस्रव का दायरा अतिव्यापक होने से इसको प्रमुखता दी गई है। इसका एक कारण यह भी है कि कषायादि चारों कारण भावानव हैं, वे कर्मों का ग्रहण एवं आकर्षण करने में सीधे कारण नहीं हैं, ये चारों भावानव जब योगों के साथ मिलते हैं, यानी योग से मिथ्यात्व, प्रमाद, अविरति और कषाययुक्त होते हैं तव योग ही कर्म-पुद्गलों को आकर्षित-गृहीत करके लाता है और आत्मा से जोड़ता है। जलाशय में जल को प्रवाहित (आनवित) और प्रविष्ट करने में नाला ही मुख्य निमित्त होता है, वैसे ही आत्मा (आत्म-प्रदेशों) में कर्मजल के प्रवाह (आम्नव) को प्रवाहित और प्रविष्ट करने में योग ही प्रमुख निमित्त होने से योग को आसव कहा गया है। आत्मा को स्वभाव की स्थिति से हटाकर बाह्य पदार्थों (विभावों या परभावों) के साथ जोड़ने वाला यानी कर्म-पुद्गल परमाणुओं को बाहर से आकर्षित करके आत्मा के साथ जोड़ने वाला योग आम्रव है। मन-वचन-काया से होने वाली क्रियाओं से आत्म-प्रदेशों में परिस्पन्दन, हलचल या चांचल्य होना योग है। इसके दो रूप हैं-द्रव्ययोग और भावयोग। वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम से प्राप्त वीर्यलब्धि यानी जीव के सर्वप्रदेशों में रहने वाली कर्मग्रहण करने में कारणभूत शक्ति भावयोग है, और उस सामर्थ्य वाले आत्मा का मन-वचन-काय के अवलम्बन से आत्म-प्रदेश-परिस्पन्दन द्रव्ययोग है। वस्तुतः योग आम्रव का हेतु कर्मजनित चैतन्य-परिस्पन्दन या कम्पन है। इसलिए आत्मा की क्रिया का कर्म-परमाणुओं से संयोग को ही योग कहना' चाहिए, अन्य संयोगों या गति को नहीं। योग के शुभत्व या अशुभत्व का आधार भावों की शुभाशुभता है। यही कारण है कि त्रिविधयोग अपने आप में सुख-दुःख के कारण नहीं होते, जब ये त्रिविधयोग मिथ्यात्वादि चार आम्रवों के साथ मिलते हैं, उनसे चैतन्य मूर्छित हो जाता है, तभी ये सुख-दुःख के हेतु बनते हैं। आलम्बन के भेद से योग के तीन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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